असम के सिलचर में हवाई अड्डे के निर्माण का बागान मजदूरों ने किया विरोध

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शुभम् पाण्डेय ः जब आप ऑफिस के कामों से थक जाते हैं, तो आप में से ज्यादातर लोग उस समय चाय की चुस्की लेना पसंद करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि जिस चाय को आप पी रहे है, उसकी चायपत्ती कहाँ से आती है?
चायपत्ती के खेतों को बागान कहते हैं। चायपत्ती के बागान ढ़लान वाली जगहों पर की जाती हैं। ये बगानें ज्यादातर हिल स्टेशनों पर होतीं हैं, जैसे- असम, पालमपुर (हिमाचल प्रदेश), मुन्नार (केरल), जोरहाट (असम), दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल), नीलगिरी पहाड़ (तमिलनाडू)।
इन्हीं चाय के बागानों में से एक असम के कछार ज़िले के डोलू चाय बागान में से चाय के पौधे को हटाया जा रहा है। दरअसल असम सरकार ने 12 मई से सिलचर में प्रस्तावित हवाई अड्डे के निर्माण के लिए काम शुरू कर दिया है।
वहाँ काम कर रहे लोग इसका जोरदार विरोध कर रहे है।
इस पूरी घटना पर सिलचर के सांसद डॉ. राजदीप रॉय ने कहा कि कुछ लोग अपने फायदे के लिए मजदूरों को गुमराह कर रहें हैं, जिसके चलते मजदूर इस हवाई अड्डे का विरोध कर रहें हैं। इनका दावा है कि हवाई अड्डे के निर्माण से कोई भी बेरोजगार नहीं होगा।
सांसद रॉय ने चाय के पौधों को हटाये जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 350 एकड़ भूमि पर बनाये जा रहे ग्रीन फील्ड हवाई अड्डा के संबंध में पहले ही श्रमिक संगठन, बागान प्रबंधन तथा जिला प्रशासन के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया था। जिसमें कहा गया है कि ग्रीन फील्ड हवाई अड्डा के निर्माण के चलते एक भी श्रमिक बेरोजगार नहीं होगा।

आपको बता दें कि, बीते 7 मार्च को डोलू टी कंपनी इंडिया लिमिटेड के अधिकारियों और डोलू चाय बागान के मज़दूरों से जुड़े तीन पंजीकृत ट्रेड यूनियनों के बीच एक एमओयू अर्थात समझौते पर हस्ताक्षर किया गया है।
इसमें चाय बागान के मजदूरों का प्रतिनिधित्व करने वाला बराक चाय श्रमिक संघ, अखिल भारतीय चाय मज़दूर संघ और बराक घाटी चाय मज़दूर संघ के नेताओं ने इस एमओयू पर साइन किया है। पर वहाँ विरोध कर रहे मजदूरों का कहना है कि इस तरह के किसी भी एमओयू पर साइन करनें से पहले उनसे कुछ भी नहीं बताया गया।

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