स्ट्रॉबरी

स्ट्रॉबरी

जहां कारवां भूल जाते हैं रास्ता, वहीं से निकलती हैं मंजिल की राहें। यह पंक्तियां पटौदी के गांव घोषगढ़ के रहने वाले एक युवा धर्मेंद्र यादव पर बेहद सटीक बैठती हैं। बीटेक करने के बाद जब धर्मेंद्र को एसएससी सीजीएल में चयन होने के बाद मनचाही जगह पोस्टिंग नहीं मिली तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी। इसके बाद धर्मेंद्र ने पिछले वर्ष अपने गांव में एक एकड़ में स्ट्रॉबरी फ्रूट्स की खेती शुरू की। जिसमें लाखों रुपये का मुनाफा हुआ। अब दो गुना भू-भाग में धर्मेंद्र ने स्ट्रॉबरी की पैदाबार की है। इस तरह उन्होंने स्वावलंबन की एक मिसाल पेश की है।

धर्मेंद्र यादव ने अमर उजाला से बातचीत में बताया कि मैंने गत 2014 में बीटेक मैकेनिकल से पास किया। इसके बाद एसएससी की तैयारी कर सीजीएल में सिलेक्ट हो गया लेकिन जिस जगह पोस्टिंग मिली, वह रास नहीं आ रही थी। उस समय कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या किया जाए? इसके बाद दिल में कुछ अलग करने की मंशा के चलते सोशल मीडिया के माध्यम से स्ट्रॉबरी पैदा करने की जानकारी ली। वह एक एकड़ के लिए 40 हजार पौधे लाए। सितंबर 2020 में यह पौधे लगा दिए। नवंबर से स्ट्रॉबरी फ्रूट्स तैयार होने लगे। शुरूआती दौर में दस किलो, उसके बाद फरवरी माह में हर रोज दो से ढाई क्विंटल स्ट्रॉबरी की पैदावार होनी शुरू हो गई। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब नौकरी करने का कोई इरादा नहीं है, न इच्छा है। धर्मेंद्र कहते हैं कि स्ट्रॉबरी की खेती ऐसी है, जिसे किसानों को भी बेचने में कोई समस्या नहीं आती है। एक वर्ष पहले जब खेती शुरू की थी तो तीन से चार लाख रुपये लागत आई थी। अब धर्मेंद्र इस खेती में इतने व्यस्त हो गए हैं कि इसी पर ध्यान केंद्रित है। स्ट्रॉबरी सितंबर महीने में बोई जाती है और अप्रैल के अंत तक इसकी पैदावार बंद हो जाती है। उन्होंने क्षेत्र के अन्य किसानों से भी आधुनिक कृषि को बढ़ावा देने की बात कही है। उन्होंने बताया कि स्ट्रॉबेरी की पौध हिमाचल प्रदेश या पूना से लेकर आते हैं।

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