चुनावी घोषणा पत्र को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल

घोषणा

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देश में चुनाव के दौरान नेताओं व कार्यकर्ताओं की ज्यादातर भागीदारी देखनें को मिलती हैं। कोरोना महामारी के चुनौतियों के बाद भी चुनाव आयोग ने जिस तरह देश और विभिन्न राज्यों में चुनाव कराया हैं। वह निश्चित तौर से प्रशंसानीय के योग्य है। चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियां अपनी जीत निश्चित करने के लिए जनता से लोकलुभावन वादे करते हैं कि अगर उसकी राज्य या केंद्र में सरकार बनी तो जो उन्होंने वादे चुनावी घोषणा पत्र में किए है वह उसे पूरा करेंगे।
इन सबके बीच बिहार की राजनीति में बड़ा उलट-फेर हुआ है। जहां पहले नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार चला रहे थे अब वह भाजपा से नाता तोड़ राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार बना ली है। राज्य में एक बार फिर से तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है, इस सरकार का भविष्य बिहार के लिए क्या होगा। यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन पिछले विधानसभा के चुनाव में तेजस्वी यादव ने लोगों से जो वादा किया था। उस किए गए वादे को बिहार की जनता उन्हें जरुर याद दिला रही है। इस सवाल को उठता देख क्या नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव मिलकर बिहार की जनता से किये गए वादे को पूरा कर पायेगें
लुभावने वादे
चुनाव के समय में कई सारी नेता पार्टियां देश की जनता को अपने चुनाव चिन्ह के प्रति आकर्षित करने के लिए चुनावी घोषणा पत्र में कई सारे लुभावने वादे को शामिल करते हैं। ताकि देश की जनता उस पार्टी को वोट देकर उन्हें जिताने में मदद करें। ऐसें में सवाल का विषय यह है, कि क्या हमें यह सुनिश्चित नही करना चाहिए कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के दवारा चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादे को वास्तविक रुप से पूरी तरह लागू किया जाए।

घोषणा-पत्र और जनहित याचिका
सुप्रिम कोर्ट ने जनहित याचिका को दायर कर केंद्र और चुनाव आयोग को चुनाव घोषणा पत्र को आदेशित करने और किए गए वादों के लिए राजनीतिक दलों के जवाबदेही बनाने के लिए निर्देश देने की मांग की है। साथ ही यह भी कहा है कि प्रत्यक्ष रुप से यह घोषित किया जाए कि चुनाव घोषणा पत्र सिर्फ एक विजन डाक्यूमेंट है।

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