सहज नहीं होंगे भारत और तालिबान के रिश्ते

लेखक राजतिलक शर्मा

अफगानिस्तन के अंदर तालिबान ने पूरी तरह सत्ता पर अपना कब्जा जमा लिया है, अब बस अंतरिम सरकार की घोषणा बाकी रह गई है। मोदी सरकार पड़ोसी मुल्क में उभर रही नई सत्ता पर बारीकी से नजर रखे हुए है। दूसरे कई देशों की तरह भारत को भी अपनी विदेश नीति में अब बदलाव की जरूरत महसूस हो रही है। अमेरिका, चीन, रूस और पाकिस्तान के प्रतिनिधि पहले की तालिबान की बढ़ती हुई ताकत को देखते हुए 11 अगस्त को कतर की राजधानी दोहा में मिल चुके हैं। हालांकि भारत को इस वार्ता में शामिल नहीं किया गया। माना जा रहा है कि ऐसा इसलिए किया गया कि भारत की तालिबान पर कोई पकड़ नहीं है।

मोदी सरकार के डिपलोमेट का भी मानना है कि जिस प्रकार से अफगानिस्तान के हालात तेजी से बदले हैं उससे नई चुनौती और खतरा पैदा हो गया है। एक तरफ तो भारत को अमेरिका के साथ संबंधों का भी ख्याल रखना होगा वहीं अफगानिस्तान में भारत के क्या हित हैं इसको लेकर भी रणनीति बनानी होगी। हालांकि अफगानिस्तान में हार के बाद अमेरिका की साख गिरी है। दूसरी तरफ पाकिस्तान नहीं चाहेगा की भारत अफगानिस्तान में कोई भूमिका निभाए। अफगानिस्तान पर तालिबान के सत्ता में आने के बाद जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल भी कह चुकी हैं कि यह एक कड़वी सच्चाई है, लेकिन इन हालातों से निपटना ही पड़ेगा। भारत की सबसे बड़ी चिंता है कि देश में आतंकवाद को खुला समर्थन और आतंकी गतिविधियों में शामिल रहे पाकिस्तानी जैश और लश्कर आतंकी संगठन को भारत में हमले करने के लिए एक और सुरक्षित स्थान मिल जाएगा।

हालांकि तालिबान की तरफ से कहा जा रहा है कि भारत उसका दुश्मन नहीं है। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में पिछले 20 सालों के अंदर बुनियादी ढ़ाचे को बदलने के लिए काफी काम किया है। जिसकी तारीफ तालिबान भी कर रहा है। लेकिन तारीफ भर से तालिबान पर विश्वास करना जल्दबाजी होगी। इससे पहले मोदी सरकार को तालिबान के इतिहास पर नजर दौड़ानी पड़ेगी।

दिल्ली से काठमांडू जा रहे विमान के हाईजैक में तालिबान की भूमिका से जुड़ी बातें अभी तक देश के लोग भूले नहीं हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक इसी तालीबानी संगठन ने आतंकवादियों को इंडियन एयरलाइन्स के विमान हाईजैक के बाद पाकिस्तान पहुँचाने में मदद की थी। दूसरी तरफ भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की हत्या को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हाल ही में तालीबान की तरफ से ऐसे कई बयान आए हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह भारत से संबंध बनाने के लिए कितना गंभीर है। एक तरफ वह कहता है कि भारत हमारा दुश्मन नहीं है। वहीं दूसरी तरफ वह भारत को आंख दिखाने से भी गुरेज नहीं कर रहा है। पिछले दिनों गुजरात में पीएम मोदी ने कहा था कि आतंक के सहारे सत्ता पर काबिज होने वाली सोच का अस्तित्व ज्यादा समय तक नहीं होता, इस प्रकार की सोच बहुत दिनों तक मानवता को दबाकर नहीं रख सकती। हालांकि पीएम ने उस दौरान तालिबान का जिक्र नहीं किया था, लेकिन वहां के वरिष्ठ नेता शहाबुद्दीन दिलावर ने कहा था कि भारत अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में दखल न दे। अब तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन की तरफ से कश्मीर पर भी बयानबाजी की गई है। जिसमें शाहीन ने कहा है जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों के लिए आवाज़ उठाने का उन्हें अधिकार है लेकिन वह अपनी धरती से किसी भी भारत विरोधी गतिविधियों को चलने नहीं देंगे। हालांकि केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कश्मीरी मुसलमानों पर की गई टिप्पणी पर तालिबान को नसीहत देते हुए कहा कि है यहां के मुस्लमानों को बख्स दो और भारत संविधान से चलता है और यहां पर सभी को अपने-अपने धर्म को मानने की आजादी है। नकवी के बयान को देखकर लगता है कि भारत चाहता है कि अफगानिस्तान में सभी लोगों को मौलिक अधिकार मिले। वहां पर लड़कियों को स्कूल जाने से न रोका जाए। दूसरी तरफ तालिबान को अमेरिका, रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात सहित किसी भी देश ने औपचारिक मान्यता नहीं दी है लेकिन दबे स्वर में समर्थन मिलने लगा है। इन सभी देशों के अफगानिस्तान में अपने-अपने हित हैं लेकिन भारत को उन सभी पहलूओं पर ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना होगा। राजनीतिक तौर पर माना जाता है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में कोई किसी का मित्र और दुश्मन नहीं होता है। अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि भारत तालिबान के प्रति अपनी कूटनीति में कहां तक बदलाव लाता है।

(लेखक आईआईएमटी कॉलेज समूह से जुडे हुए हैं)
(E-mail= rajtilak29@gmail.com)

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