भारत छोड़ो आन्दोलन में 10 बड़े नामों की कुर्बानी

भारत में 15 अगस्त का दिन बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागिता निभाते हुए पवित्र मिट्टी में अपना बलिदान करने वाले गुमनाम। उनका उद्देश्य प्रसिद्धि हासिल करना नहीं था, उनका लक्ष्य देश को आजाद कराने का था। गुमनाम स्वतंत्रता सैनानियों को याद कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करना हम देशवासियों का फर्ज है।

मातंगिनी हाजरा- भारत की आजादी में प्रमुख नाम जिन्होनें तिरंगे को आखिरी सांस तक झुकने नहीं दिया। भारत छोड़ो आंदोलन और असहयोग आंदोलन में तिरंगा लेकर उन्होंने जुलूस निकाला था, उसी दौरान ब्रिटिश हुकूमत के सिपाहियों ने उनके सीने को गोलियों से छलनी कर दिया था।
बेगम हज़रत – अवध के नवाब की पत्नी बेगम हज़रत ने ब्रिटिश हकुमत से कई बार लोहा लिया।
उनके पति को ब्रिटिश शासन ने देश से बाहर निकाल दिया था, जिसके कारण बेगम ने अवध का शासन संभाला था। जानकारी के अनुसार लखनऊ को अंग्रेजी हकूमत से रिहा करवाने में उन्होंने सर्वस्व बलिदान कर दिया। लखनऊ को नबावों का शहर बनाकर उन्हें नेपाल जाना पड़ा, वहीं कुछ समय बाद वो वीरगति को प्राप्त हो गई।
सेनापति बापट – बापट सत्याग्रह के बेखौफ नेता थे, इसी कारण उन्हें सेनापति का दर्जा मिला था। हिंसा को उन्होंने कभी नहीं अपनाया, उनके एक भाषण से पुणे में अफरा तफरी मच गई थी, जिसके कारण उनको अपनी गिरफ्तारी करवानी पड़ी थी। उन्हें पहली बार आजाद तिरंगा फहराने का सौभाग्य पुणे की धरती पर मिला था। उसी दौरान हृदय गति रुक जाने के कारण उन्हें दुनिया से अलविदा कहना पड़ा।

अरुणा आसफ अली – आजादी की लड़ाई में बैखौफ महिला अरुणा ने 33 वर्ष की आयु में इतिहास रचा दिया था। साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बनकर गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय कांग्रेस का पर्चम लहराया था।
पोटी श्री रामुलू – राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के शिष्य और कट्टरवादी समर्थक होने के कारण गांधी उनकी बेहद पसंद करते थे। उनका उद्देश्य गांधी जी के मानवीय कार्यों पर सच्ची श्रृद्धा और निष्ठा से खरा उतरना। एक बार सभा में गांधी जी ने कहा कि रामूलू जैसे 11 सहयोगी मिल जाए तो आजादी की लड़ाई और भी आसान हो जाएगी।

भीकाजी कामा – देश में कामा के नाम से कई सड़कों और भवनों का निर्माण हुआ लेकिन वो गुमनामी के अंधेरे में रह रही है। आंदोलन के साथ उन्होंने लैंगिक समानता की पक्षधर नेता के बतौर अपना योगदान दिया है। उन्होंने नारी प्रतिष्ठा को बढ़ाने में पैतृक संपत्ति का बड़ा हिस्सा खर्च करने के बाद अनाथालय बनवाया। साल 1907 में उन्होंने इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस का भारत में ध्वज लहराया था।

तारा रानी श्रीवास्तव – बिहार के सीवान से ताल्लुक रखने वाली महिला तारा जी ने अपने पति के सहयोग से पुलिस स्टेशन के बाहर जुलूस निकाला। उसी दौरान उनके सीने में पुलिस ने गोली मार दी, हिम्मत के साथ खड़ी हुई और अपने हाथों पति बांधकर जुलूस को आखिरी मुकाम तक पहुंचाया।

कन्हैया लाल माणिकलाल – कन्हैया को कुलपति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की थी। स्वतंत्रता की लड़ाई कई बार उन्हें कारावास भी जाना पड़ा। उनका त्याग और प्रेम देश के लिए यादगार बन गया।

पीर अली खान – ब्रिटिश हुकूमत की बंधक बनने के बाद भी देश प्रेम अटल बना रहा। पीर ने विधान सभा का चुनाव भी लड़ा। समाज में नई सोच देने के साथ उन्होंने हस्तलिप थियेटर और हैंड लूम्स जैसे कई अद्भुत कार्य किए। साथ ही उनका स्वतंत्रता की लड़ाई में काफी योगदान रहा है।

कमला देवी चट्टोपाध्याय – भारत छोड़ो आंदोलन के कट्टरवादी नेताओं में उनकी पहचान की जाती है। 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बनकर अपना कर्तव्य सच्ची निष्ठा से निभाया। आंदोलन की मुख्य भूमिका निभाने के कारण चट्टोपाध्याय के साथ 14 लोगों को फांसी पर लटकाना पड़ा था।

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