भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा का क्या है राज

देवों के देव महादेव

देवों के देव महादेव

अंकित कुमार तिवारी। देवों के देव महादेव भगवान शिव अपने शीश पर चंद्र धारण किए हुए हैं। उनके जिस भी रूप को देखें उनके मस्तक पर चंद्रमा नजर आते हैं, आखिर ऐसा क्यों है शिवजी ने क्यों चंद्र को अपने शीश पर धारण किया। पौराणिक कथाओं में इस प्रसंग को लेकर काफी कुछ कहा गया है। एक कहानी शिवपुराण में इस प्रकार है। समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष का स्वयं शिव ने पान किया था, ताकि सृष्टि की रक्षा हो सके। विष उनके कंठ में जमा हो गया, जिससे वे नीलकंठ कहलाए. कहा जाता है। कि विषपान के प्रभाव से उनका शरीर अत्यधिक गर्म होने लगा था, तब चंद्र आदि देवताओं ने प्रार्थना की कि वह अपने शीश पर चंद्र को धारण करें, ताकि उनके शरीर में शीतलता बनी रहे। क्योंशकि श्वेत चंद्रमा बेहद शीतल हैं और उनसे सृष्टि को शीतलता प्रदान होती है, इसलिए शिवजी ने उन्हें  अपने मस्तक पर धारण कर लिया।

अन्य कथा भी है वो इस प्रकार है की चंद्रमा की पत्नी 27 नक्षत्र कन्याएं हैं। जिनमें रोहिणी उनके सबसे समीप थीं, इससे दुखी अन्य कन्याओं ने अपने पिता प्रजापति दक्ष से शिकायत कर दी। तब दक्ष ने चंद्रमा को शाप दे दिया, जिससे चंद्रमा क्षय रोग से ग्रस्ति हो गए, और कलाएं क्षीण होती गईं। चंद्रमा को बचाने के लिए नारदजी ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा इस प्रकार चंद्रमा ने शिवजी को प्रसन्नन किया। उसके पश्चात् चंद्रमा मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए और पूर्णमासी पर अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए। भगवान शिव की कृपा से चंद्रमा को अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिली, तब चंद्रमा के अनुरोध करने पर शिवजी ने उन्हें अपने शीश पर धारण किया।

चंद्रमा की 27 पत्नियां

रोहिणी, रेवती , कृतिका , मृगशिरा , आद्रा, पुनर्वसु , सुन्निता , पुष्य अश्व्लेशा, मेघा , स्वाति ,चित्रा , फाल्गुनी, हस्ता , राधा , विशाखा ,अनुराधा , ज्येष्ठा , मूला, अषाढ़, अभिजीत ,श्रावण , सर्विष्ठ , सताभिषक , प्रोष्ठपदस ,अश्वयुज और भरणी। चंद्रमा के अलावा शिव ने गंगा को भी अपनी जटाओं में समाया और नाग को भी अपने गले में धारण किया।

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