भारतीय सेना दिवस पर प्रोत्साहन और सुरक्षा समेत देश सेवा का प्रतीक, एमएम नरवणे ने सेना की प्रसंशा

भारतीय सेना दिवस

हम सबको अपनी सेनाओं पर सबसे ज्यादा गर्व है, इसलिये कि वे राजनीति की तरह झूठे वादों का झुनझुना हमारे हाथ में नहीं थमातीं, बल्कि पूरे समर्पण और अपनी जिंदगी दांव पर लगाते हुए वे सैनिक हमारी सरहदों की रक्षा करते हैं, ताकि हम सब चैन की नींद ले सकें. किसी भी देश के लोगों के लिए ये सबसे बड़ा गौरव होता है कि जिसे वो जानते-पहचानते तक नहीं, वही उनकी रक्षा में हर वक़्त मुस्तैद रहता है.  

लेकिन हमारे देश में इधर पिछले कुछ सालों में ये देखने में आ रहा है कि सेना  पर भी कोई ऐसा दबाव पड़ने लगा है कि न चाहते हुए भी उन्हें दुश्मनों के ख़िलाफ़ अपनी रणनीति का खुलासा सार्वजनिक करने पर मजबूर होना पड़ रहा है. देश के राजनीतिक दल को चलाने वाले किसी भी एक समझदार सर्वेसर्वा ने न कभी चाहा है और न ही वह चाहेगा कि सेना पर किसी भी तरह से सियासत का मनहूस साया पड़े.

वैसे सोचने वाली बात ये है कि ऐसा पहली बार तो हुआ नहीं कि हमारी पहाड़ी सरहदों पर पहली बार बर्फबारी हुई हो और उस बर्फ के जमने की आड़ लेकर आतंकी देश की सीमा में घुसपैठ करने की कोशिश न करें.ऐसा पहले भी अनेकों बार हो चुका है,लिहाज़ा आतंकियों के ऐसे मंसूबे को नाकाम करने के लिए हमारे सैनिक जरूरत से भी ज्यादा मुस्तैद रहते हैं.लेकिन शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि जब सरहदी सीमाओं पर बर्फ पिघलने की शुरुआत हो चुकी हो,तब ये कहा जाए कि सीमापार से सैकड़ों आतंकवादी घुसपैठ करने की तैयारी में हैं.

ऐसे हालात में सेना प्रमुख एमएम नरवणे ने कल जो बयान दिया है,उसे लेकर रक्षा जगत से लेकर सियासी हलकों में जो सवाल उठ रहे हैं, वे उनकी नीयत पर नहीं बल्कि इसकी टाइमिंग को लेकर हैं. भारतीय सेना दिवस

हालांकि हम न तो सेना प्रमुख के दावे पर कोई सवाल उठा रहे हैं और न ही उनकी नीयत पर लेकिन पत्रकारिता का पहला फर्ज होता है कि वह  सिक्के के दोनों पहलुओं को सामने रखते हुए जनता पर ये फैसला छोड़ दे कि वो किसे सही मानती है और किसे गलत. सियासी गलियारों में सवाल ये उठ रहा है कि यूपी समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की तारीख़ों का ऐलान होने के तुरंत बाद ही सेना प्रमुख को ऐसा बयान आखिर क्यों देना पड़ा?

वैसे अगर कोई भी सियासी चश्मा लगाए बगैर देखा जाए,तो जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का निर्णय और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने का जो फैसला लिया,उसकी विपक्षी दल चाहे जितनी आलोचना करें,लेकिन आतंकवाद का खात्मा करने में ये बेहद अहम हथियार साबित हुआ है.भारत और पाकिस्तान के बीच कई सालों से युद्धविराम के समझौते होते आये हैं,जो परवान नहीं चढ़े.लेकिन शायद ऐसा पहली बार हुआ है,जब सेना प्रमुख ने भी माना कि पिछले साल यानि फरवरी 2021 में भारत और पाकि‌स्तान के डीजीएमओ के बीच एलओसी पर युद्धविराम समझौता दोनों देशों के लिए फायदेमंद रहा है और लंबे समय तक शांति रही है. उनके मुताबिक एलओसी पर सिवाय दो युद्धविराम की उल्लंघन की घटनाओं को छोड़कर अमूमन शांति ही रही है.

हालांकि, थलसेना प्रमुख ने यह भी साफ कर दिया कि एलओसी पर पाकि‌स्तान की तरफ अलग-अलग लॉन्च पैड पर 350-400 आतंकी अभी भी मौजूद है जो लगातार घुसपैठ की कोशिश कर रहे हैं. इससे पाकिस्तान के गलत इरादों के बारे में पता चलता है. जनरल नरवणे ने कहा कि भारत की आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टोलरेंस’ नीति रही है. भारतीय सेना दिवस

वैसे एक तथ्य ये भी है कि पिछले दो-तीन साल में एलओसी और बॉर्डर पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और उसकी सेना ने ड्रोन के जरिये हम पर हमले करने की रणनीति बनाई है क्योंकि उसके ट्रेंड किये हुए आतंकी अब भारत की सीमा में घुसपैठ करने में नाकाम हो रहे है.

लेकिन ये सच तो हम सब जानते हैं कि पाकिस्तान हमारा सबसे नजदीकी पड़ोसी है लेकिन वह दुश्मन भी है क्योंकि वो सिर्फ आतंकवाद पैदा ही नही करता बल्कि उसे पालता-पोसता है और फिर हमारी जमीन पर खून बरसता देख जश्न भी मनाता है.लेकिन दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में बरसों पहले जो बात कही थी, वो तब भी उतनी अहम थी,आज भी है और शायद आगे भी रहेगी.उन्होंने कहा था- “हम सब कुछ बदल सकते हैं लेकिन अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते.इसलिये अगर हमारा पड़ोसी खुराफ़ाती है,तो उससे निपटने के तरीके भी हमें ही तलाशने होंगे.” इसलिये अब सवाल ये है कि मोदी सरकार ने इस खुराफ़ाती पड़ोसी से निपटने का माकूल तरीका क्या तलाश लिया है? भारतीय सेना दिवस

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