स्त्री है, मॉं दुर्गा का स्वरूप

स्त्री है, मॉं दुर्गा का स्वरूप

लवी फंसवाल। स्त्री एक ऐसा शब्द है, जिसे सुनकर हर मनुष्य के मन में एक अलौकिक झांकी की प्रतिमा उभर कर आ जाती है। स्त्री त्याग और प्रेम की एक सुंदर मूर्ति है। भारतीय सभ्यता में स्त्री को देवी के समान पूजने बताते हैं और पूजा भी करते हैं। लेकिन आज के समय में अनेकों हप्सी स्त्री को केवल भूख मिटाने का साधन समझते हैं, वैसे तो आदरणीय प्रधानमंत्री जी और हमारे प्रदेशों के मुख्यमंत्री जी ने पहले की भांति इस ओर अत्यधिक ध्यान दिया है, किंतु आए दिन बहुत से ऐसे के सामने आ जाते हैं जिनसे रूह कांप जाती है अभी भी स्त्री की दशा समाज में घृण्य हैं, जिसे कोमल दिल से दर्शाया नहीं जा सकता भारतीय समाज में नारी की पूजा भले ही विभिन्न रूप में करते हैं, किंतु उसे डर रहता है कि कहीं यह पुजारी उस देवी को नोच न डालें। इस बात का पता इस तरह लगाया जा सकता है, यदि आज कोई स्त्री किसी भी कार्य व आत्मनिर्भर बनना चाहती है, तो लोग उसे बहुत गलत निगाह से देखते हैं, तरह-तरह की बातें बनाने लगते हैं। अगर किसी नौकरी के लिए जाती है, तो उसे तरह-तरह के प्रलोभन देकर फंसाते हैं जो हमारे भारत में बहुत प्रचलित सा हो गया है और बहुत ही कृतघ्न भी है, शर्म से डूब मरने लायक बात है। यहां नारी को केवल उपयोगी वस्तु के रूप में देखा जाता है, कम शब्दों में कहें तो यह दुनिया के लोग उसे खिलौना समझते हैं। वह यह भूल जाते हैं कि झांसी भी एक नारी थी, जिसने अपनी शक्ति से दुनिया को हिला दिया था और मेरा भाई भी एक नारी थी, जिसने विष के प्याले को भी प्रेम में तुच्छ बता दिया था। ऐसे अनेकों उदाहरणों के साथ स्त्री को शक्ति और समर्पण दोनों प्रकार के रूप में देखा जाता है। यूं ही नहीं दुर्गा बताते हैं नारी को इन नीच भेड़ियों के सिर धड़ से अलग करने वाली है वो, अरे! इतना सीधा और कमजोर ना समझो उसे, तुम जैसों की भी जन्मदात्री है। वो, मनुस्मृति में कहा गया है- “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:” अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। आज के युग में भी बहुत से घरों में एक लड़की को पढ़ने लिखने नहीं दिया जाता है। वह भी इस कारण कि तुझे अगले घर जाना है क्या करेगी पढ़कर, कहीं-कहीं उसे दहलीज से बाहर कदम नहीं रखने देते हैं वह भी इस कारण की कोई देख लेगा, यह कर देगा-वह कर देगा, बस घर में रहो। अर्थात अभी भी इतने गंदे वातावरण में उसे निडर नहीं बनने दिया जा रहा है। जिससे वह इस दुनिया की नीच हरकतों का सामना कर सके आज भी उसे झांसी की रानी बनने से रोका जा रहा है। लेकिन हर नारी को झांसी बनना आवश्यक है, क्योंकि शक्ति रहित स्त्री को यह संसार “औरत” ही समझने लगता है।

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