धार्मिक एकता एवं शांति का त्योहार महाशिवरात्रि

भारत धार्मिक ससंगती का महान देश है, हिंदुस्तान में सभी धर्मों के त्योहार रीति रिवाजों के साथ मनाया जाते है। वर्ष में एक बार महाशिव रात्रि का पर्व मनाया जाता है। फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष में इस त्योहार को परम्परागत तरीके से मनाया जाता है। शिव अभिषेक कर भगवान शंकर से मनसा वाचा कर्मणा की इच्छा जागृत कर अपने जीवन के हर संकल्प की राह आसान करने का प्रयास करते है। विधि विधान से पूजा अर्चना की संपन्न किया जाता है। भगवान शंकर के पवित्र महाशिव रात्रि में कई महत्वपूर्ण रहस्य भी छिपे है। आस्था रखने का सबसे बड़ा उदेश्य जीव मानव और संपूर्ण प्रकृति में शांति का संदेश डालना होता है। सद्भाव से प्रत्येक त्योहार की कर्म पद्धति की विधिवत शुभ मुहूर्त में अनुष्ठित किया जाता हैं। कालांतर में जब लोगों में श्रद्धा एवं स्नेह का क्षरण होने लगता है। तो इनमें निहित आध्यात्मिक सत्य का स्थान कर्मकांड एवं अनौपचारिकता अपने सरंक्षण में समाहित कर लेती है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आज सभी पर्व औपचारिकता को निभाने के लिए बनाए जाते हैं। परंतु आज के वैज्ञानिक युग में त्योहारों के पीछे छिपे आध्यात्मिक सत्य का उद्घाटन करने की आवश्यकता है। जिससे इस संसार में व्याप्त अज्ञानता और तपो प्रधानता को दूर करके मनुष्य सभ्यता को यथार्थ मार्ग दिखाया जा सके।

शिवलिंग धार्मिक प्रतिष्ठा की यादगार,

विश्व के सभी धर्मांतरण लोगों में एक ही परमात्मा के कई स्वरूप की मान्यता देखी जा सकती है। परमात्मा वास्तविकता क्या एक है या अलग? यह सवाल हर जुबान पर निकलता है। ” ईश्वर अल्लाह एक ही नाम” में स्पष्टता अर्थ निकलता है कि परमात्मा एक ही है। साधुओं का कहना है कि ब्रम्ह एक है उनके मृत लोक में निम्न क्रिया कलापों को विस्तार देने में अनेक स्वरूपों का व्याख्यान किया जाता है। परमात्मा के संबंध में असत्य भ्रामक और एकांगी विचारों के कारण ही समाज में हिंसा घृणा और वितृष्णा का जन्म हुआ। संसार में अधिकांश भ्रम का लेप किया जा रहा है। परमात्मा ज्योतिर्विदुं स्वरूप है: भाषा और शब्दों के फेरबदल से परमात्मा के रूपों की वर्गीकृत कर दिया है। भारत के साथ दूसरे देशों के देवालयों में स्थापित शिवलिंग परमात्मा के ज्योति स्वरूप की यादगार है। शिवलिंग कोई मानवीय रूप नहीं है। शिव का अर्थ कल्याणकारी और लिंग का अर्थ चिन्ह होता है। शिवलिंग किसी एक विशेष धर्म के आराध्य प्रतीक नहीं है। परमात्मा सभी धर्म के मनुष्यात्माओं का आराध्य है। इसमें धर्म जाति कर्म को वर्गीकृत करने का कहीं भी जिक्र नहीं है। परमात्मा के विभिन्न अंगों को धर्म के अनुरूप प्रचलित नूर, डिबाइन लाइट, ओंकार और ज्योर्तिस्वरूप आदि भाषांतरण में उल्लेखित किया गया है। भाव के अनुसार पार्थिव प्रतिमाओं की विचारातमक्ता का आनुवंशिक रूपांतरण का है। शिवलिंग सर्वत्माओं का कल्याकारी स्वरूप है।

महाशिवरात्रि का अद्भुत रहस्य

प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन मास की अमावस्या के एक दिन पूर्व बड़ी ही आस्था के साथ मनाया जाता है। इस दिन शिवलिंग की विशेष आराधना की जाती है, एवं इस पर बेलपत्र, धतूरा, बेल और फूल फल चढ़ाए जाते है। भक्तजन अखाद्य पदार्थ जैसे भांग और गांजा का सेवन प्रसाद के रूप में करते हैं। इस दिन शिव की बारात भी निकाली जाती है। जिसमें सभी प्रकार के व्यक्ति और प्राणी सम्मिलित होते हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर व्रत करने तथा रात्रि में जागरण करके आराधना करने की भी परंपरा भक्तजनों में प्रचलित है। मानव प्रजाति के मुखारविंद से कुछ सवालों का आंकलन किया जाता है। शिव कौन है? शिव के लिए लिंग या ज्योर्तिलिंग का प्रयोग क्यों किया जाता है? शिव के साथ रात्रि का क्या संबंध है? कृष्ण के साथ अष्टमी श्रीराम के साथ नवमी लेकिन शिव के साथ केवल रात्रि क्यों? शिव के साथ तिथि का उल्लेख क्यों नहीं? शिव के साथ शालिग्राम कौन है? सभी देवी देवताओं को छप्पन भोग स्वादिष्ट और सुगंधित फूल चढ़ाएं जाते है, लेकिन शिवलिंग में अक़ धतूरा गांजा बेर आदि क्यों चढ़ाया जाता है? शिव लिंग शरीर रहित है लेकिन शिव सवारी नंदी शरीर धारी क्यों है? महा शिवरात्रि से जुड़े विभिन्न सवालों के बारे में जानकारी लेना आवश्यक है। शिवजी की क्रिया कलापों का चिंतन करना महापुण्य का आयामी साधन हैं। महाशिवरात्रि के पर्व को यथार्थ ढंग से मना कर संसार को सही दिशा दी जा सकती है, एवं मानव मन में व्याप्त अज्ञानता और तपोभूमि आसुरी संस्कारों का समन किया जा सकता है। महाशिवरात्रि के संबंध में सबसे अनोखी बात यह है कि इसका संबंध निराकार अशरीरी परमात्मा से है, जबकि अन्य सभी त्योहारों पर्वों अथवा जयन्तियों का देवताओं पौराणिक महापुरुषों के जीवन से संबंध होता है। शिवरात्रि परमात्मा शिव के इस धरा पर अवतरण की यादगार है। परमात्मा शिव सामान्य मनुष्यों की तरह शरीर धारी नहीं है। वो जन्म मरण के बंधनों से मुक्त हैं। गीता में भगवान ने इस संबंध में कहा है कि जो मुझे मनुष्यों की भांति जन्म लेने और मरने वाला समझते हैं, मूड मति (विवेकरहित) है। वे कहते हैं मेरे जन्म के रहस्य को महर्षि और देवता भी नहीं समझ पाए हैं। इससे स्पष्ट है कि परमात्मा प्रकृति के तत्वों के अधीन कोई सामान्य मनुष्यों की तरह शरीर धारी नहीं हो सकता है। प्रायः सभी धर्मों के लोग निर्विवाद रूप से परमात्मा को ज्योति बिंदु स्वरूप और अशरीरी तथा जन्म मरण रहित तो स्वीकार करते ही हैं। शिव का अन्य भाषांतर गॉड खुदा ओंकार इत्यादि है। और शिवरात्रि परमात्मा के अवतरण दिवस की यादगार है। शिव रहस्य को भागवत गीता में अध्याय 6 और 10 के श्लोक 2, 24 व 25 में उल्लेखित किया गया है।

भगवान शिव के साथ रात्रि का संबंध

यह तो सभी धर्मानुमाई मानते ही हैं, कि परमात्मा का अवतरण पापाचार, अधर्म और अज्ञानता का विनाश करके सत्य धर्म की स्थापना करने के महान कर्म के निमित्त होता है। परमात्मा के अवतरण के काल और कर्म के संबंध में गीता में कहा गया है,
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्यूत्थानमधर्मस्य
तदात्मानं सृजहम्यहम्। (अध्याय 4 श्लोक 7)
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृतम्, धर्म संस्थापनर्थाय संभवामि युगे युगे।(अध्याय 4 श्लोक 8)
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः, त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोड़र्जुन।(अध्याय 4 श्लोक 9)
इन सभी श्लोकों में भगवान शिव के रहस्य का व्याख्यान किया गया है। ज्योतिर्विदुं स्वरूप परमात्मा का दिव्य अलौकिक जन्म, धर्म ग्लानि के समय अधर्म के विनाश के लिए होता है। यदि वर्तमान सांसारिक परिदृश्य का अवलोकन करें तो चारों ओर व्याप्त काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा समाज अधर्म और धर्मग्लानि का ही समय है। जिस समाज में भ्रष्टाचार का रूप जीवन में शिष्टाचार का हिस्सा बन गया ही उस समाज को अज्ञानता की जंजीर में जकड़ा गया होता है। माया मोह का पर्दा डलने से मानव अपने कर्तव्य की भूल जाता है। शिव के साथ रात्रि का संबंध परमात्मा शिव के घोर पापाचार और वर्तमान तपो प्रधान कलयुग की यादगार के रूप में देखा जाता है। वैसे भी भारतीय दर्शन में रात्रि शब्द अज्ञानता और विनाश काल का सूचक है। मनु ने स्पष्ट कहा है कि आसीदिदं प्रज्ञानंम लक्षणम्।। अतः फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी या त्रयोदशी रात्रि को मनाई जाने वाली शिवरात्रि महाविनाश से थोड़े समय पूर्व परमात्मा के दिव्य अवतरण “की यादगार है। ऐसे ही समय में जब ईश्वरीय ज्ञान प्रायः लोप हो जाता है। तब ज्योतिर्विदुं स्वरूप परमात्मा शिव अधर्म का विनाश कर के सत्य धर्म की स्थापना करने के लिए अवतरित होते हैं।
महापर्व शिवरात्रि में छिपा अगूड रहस्य।

शिवरात्रि के दिन भक्तगण शिवलिंग पर धतूरा, बेल बेलपत्र, इत्यादि चढ़ाते हैं। रात्रि जागरण करते हैं एवं अन्न का व्रत रखते हैं। परंतु वास्तव में परमात्मा से ऊपर यथार्थ रूप से क्या चढ़ाना चाहिए और किस प्रकार से व्रत का पालन करना चाहिए। इस महत्व को समझना जरूरी है। तभी स्वयं का और संपूर्ण विश्व का कल्याण संभव है। धतूरा विकार का, बेर – नफरत का और बेलपत्र बुराइयों का प्रतीक है। अतः हमें परमात्मा शिव पर विकारों विषय वासना एवं बुरी आदतों को चढ़ाना चाहिए। वास्तव में शिवरात्रि वर्तमान कलयुग के अंत और सतयुग के प्रारंभ में बीच के समय संगमयुग का उत्तरदायित्व को निभाती हैं। जब स्वयं निराकार परमपिता शिव साकार, मानव- तन प्रजापिता ब्रह्मा के तन में अवतरित होकर मनुष्य आत्माओं से विकारों और बुराइयों का ईश्वरीय ज्ञान और राज योग की शिक्षा देकर त्याग कराते हैं। शिवरात्रि पर विकारों एवं बुराइयों को नष्ट करने के लिए व्रत रखा जाता है। रात्रि जागरण का आध्यात्मिक रहस्य है कि परमात्मा शिव के वर्तमान समय के अवतरण के काल में हम अपनी आत्मा की ज्योति को जगाएं। अज्ञान निद्रा में कभी नहीं सोए। शिव की बारात का आध्यात्मिक रहस्य है कि परमात्मा शिव मनुष्य आत्माओं को सृष्टि के आदि मध्य अंत सृष्टि चक्र कर्मों की यथार्थ समझ एवं गहन गति का ज्ञान देकर अपने निवास स्थान परमधाम ले जाते हैं। वास्तव में बहुरूपी बाराती मनुष्य के वितरित सूक्ष्म संस्कारों का शास्त्रीय रूपक चित्रण है। शिवरात्रि के महत्व और आध्यात्मिक रहस्य को यथार्थ तरीके से समझ कर मनाने से ही सर्व समाज कल्याण सुनिश्चित होता है।

सर्व मानव प्रजाति को ईश्वरीय संदेश।

वर्तमान तमोप्रधान धर्म ग्लानी के समय में निराकार ज्योतिर्विदुं स्वरूप परमपिता परमात्मा शिव को इस धरा पर अवतरित हुए 67 हजार वर्ष हो चुके हैं। परमात्मा शिव अनेक आध्यात्मिक रहस्यों का उद्घाटन करके सत्य धर्म की स्थापना का दिव्य कर्म कर रहे हैं। एक ओर इस पुरानी पतित दुनिया के विनाश के लिए महाप्रलयंकारी आणविक अस्त्रों का जखीरा तैयार किया जा रहा है। तो दूसरी ओर प्राकृतिक शक्तियां भी उग्र प्रदर्शन कर रही हैं। जिसके फलस्वरूप जीवन रक्षक परत- ओजोन का क्षरण, तापक्रम वृद्धि, मौसम में परिवर्तन, भूकंप इत्यादि प्राकृतिक आपदाएं अस्तित्व में आ जाती हैं। यह पुरानी दुनिया के अंत का स्पष्ट संकेत है प्रकृति के अंदर घटित होने वाली सामान्य घटनाए नहीं है। अतः सर्व मनुष्य आत्माओं को हार्दिक ईश्वरीय निमंत्रण है कि वर्तमान संगम युग में निराकार परमात्मा शिव तथा स्वयं यथार्थ रीति से पहचान कर निकट भविष्य में आने वालीं नई सतयुगी दैवी – संस्कृति प्रधान दुनिया के अपने जन्म सिद्ध ईश्वरीय वर्से को प्राप्त करे। महाशिवरात्रि के आध्यात्मिक रहस्य को समझकर अपने तमोंगुणी स्वभाव और संस्कारों का त्याग करके, स्वयं के जीवन में तथा इस सृष्टि में सत्यम शिवम सुंदरम के मंगलमय तत्व का संचार करें।

भगवान शिव का परम प्रिय मंत्र उच्चारण

ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।

ॐ नम: शिवाय
आदि मंत्रो का जाप कर जीवन के हर संकट में कल्याणकारी शिव जी को हृदयंगत प्रेम की शीतलता से पुकारते है। भक्तो के प्रेम भाव को देखकर ईश्वरीय कृपा की बरसात हो जाती है।

जय महा शिवरात्रि
जय महाकाल
ॐ शांति

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