पॉक्सो एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का बदला रुख, बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को पलटा

पॉक्सों एक्ट में सुप्रीम कोर्ट सुनाया फैसला

पॉक्सों एक्ट में सुप्रीम कोर्ट सुनाया फैसला

नेहा सिंह- बॉम्बे हाई कोर्ट ने पोक्सो एक्ट के अंतर्गत आने वाले एक मामले में कहा था कि जब तक अभियोगी स्किन टू स्किन टच नहीं करता यह यौन-शोषण के अंतर्गत नहीं माना जाएगा। कोर्ट के मुताबिक़ आपराधिक मनसा के साथ अगर दोषी कपड़ों के ऊपर से पीड़ित को छूता है तो यह पोक्सो एक्ट के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं माना जाएगा।
अपनी हालिया सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को ग़लत ठहराते हुए उस वक्तव्य को ख़ारिज़ कर दिया जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था “कि स्किन टू स्किन के संपर्क के बिना नाबालिग के स्तन को छूना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है”।

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आपराधिक मनसा के साथ किसी भी तरह से यौन शोषण का प्रयास पोक्सो एक्ट के अंतर्गत आएगा और अपराधी को उचित सज़ा दी जाएगी।

दरअसल महिला और बाल विकास मंत्रालय के द्वारा प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट [POCSO] बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए 2012 में बनाया गया था।

इस एक्ट के तहत नाबालिक बच्चों के साथ अपराध करने वालों को जल्द से जल्द सज़ा देने का प्रावधान था। किसी भी तरह की विशेष परिस्थिति न होने पर 3 साल से पहले ही मामले में उचित कार्रवाई कर दोषी को सज़ा दी जाएगी।

उच्च न्यायालय की वह टिप्पणी विवादों का हिस्सा बन गई थी और उसके बाद महाराष्ट्र सरकार, राष्ट्रीय महिला आयोग और अटॉर्नी जनरल ने इसके खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। इस अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस. रविंद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की बेंच ने फैसले को खारिज कर दिया है।

न्यायलय के मुताबिक आगर हाई कोर्ट का फैसला सही माना जाए तो पोक्सो एक्ट किसी काम का हा नहीं रह जाएगा।

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