रोशन पाण्डे। दिल्ली सेवा बिल राज्यसभा में भी पास हो गया है। जी हाँ देर रात तक चली राज्यसभा में बहस के बाद बिल को हरी झंडी मिल गयी है। बिल पर चर्चा के बाद वोटिंग हुई। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने INDIA गठबंधन के सहयोगी TMC और COMMUNIST PARTY पर भी निशाना साधते हुए कहा कि इन दोनों पार्टी पहले कभी भी एक दूसरे का साथ देते हुए नज़र नहीं आयी लेकिन आज ये दोनों एक गठबंधन में शामिल कैसे ? इतना ही नहीं शाह कि कही हुई बातो का करेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे ने पलटवार करते हुए कहा कि आपके गठबंधन में भी आधे कांग्रेसी है जो पहले कांग्रेस पार्टी में शामिल थे.वही खड़गे ने राज्यसभा स्पीकर पर भी निशाना साधते हुए कहा आप भी तोह कांग्रेस पार्टी के थे।
उपसभापति ने बिल के लिए डिजिटल मशीन का जरिया चुना उसके लिए सभ सांसदों को प्रावधान समझाया गया लेकिन कुछ तकनीक खराबी की वजह से उपसभापति ने पर्ची द्वारा वोटिंग का निर्णय लिया। इसके बाद वोटों की गिनती शुरू हुई जिसके बाद राज्य सभा में बिल पास हो गया। बिल को लेकर हुई वोटों कि गिनती जिसमे से INDIA को सिर्फ 102 वोट ही प्राप्त हुए जबकि NDA को 131 वोट प्राप्त हुए जो कि बहुमत से काफी जयादा थे। आपको बतादे कि राज्य सभा में बिल पास के लिए 120 वोट अनिवार्य होते है।
अब नज़र डालते है मोदी सरकार में सांसद रमेश बिधूड़ी पर जी है सांसद बिधूड़ी द्वारा मुख्यमंत्री के लिए किये गए राज्य सभा में अपजनक शब्द कि क्या जरूरत थी। अगर ये शब्द राज्यसभा में विपक्ष प्रधानमंत्री के लिए बोलता तोह उसपर क्या कार्यवाही होती ये तोह सब जानते हैं लेकिन सांसद द्वारा बोले मुक्यमंत्री के लिए बोले गए अभद्र शब्द पर सदन में क्यों कार्यवाही नहीं हुई ?
उन्होंने संसद में बोला कि सभापति जी महाभारत में एक चरित्र था जिसका नाम था दुर्योधन। आज दुःख है कि दिल्ली राज्य में भी उसी चरित्र का उसी नकारात्मक मानसिकता का एक व्यक्ति इस दिल्ली में दुर्योधन के रूप में बैठा हुआ है। फर्क इतना है कि वह दुर्योधन लम्बा चौड़ा था यह दुर्योधन बोना है। दूसरा उसके पास शकुनि था और इस बौने दुर्योधन के पास बहुत भ्रष्टाचारी परिवारवादी सनातनी विरोधी ऐसे गठबंधन से लोग साथ लग गए है। सवाल उठता है कि क्यों संसद ने इसपर कोई कार्यवाही नहीं हुई ?या फिर सत्ता पक्ष के लोग विपक्ष में कुछ भी किसी के लिए कैसा भी शब्दों का उपयोग कर सकते है। कुछ शब्द ऐसे होते है जो आप संसद में बोल सकते हो लेकिन ये तोह संसद के रूल के मुताबिक बिलकुल ही विपरीत हैं। जब कोई सांसद चुनाव जीतकर आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर जाता है उसकी तुलना सनातनी विरोधी से कि गयी है

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