सियासी समीकरण और राजनीतिक गठजोड़ से कोसों दूर कांग्रेस

राजनीतिक

अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस सहित दूसरे क्षेत्रिय दलों ने अपने-अपने वोट बैंक को साधने के लिए कमर कस ली है। साथ ही राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं ने जनता के बीच पहुंच कर अपनी-अपनी पार्टी की जीत की दावेदारी भी करनी शुरू कर दी है। दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने सियासी समीकरण और राजनीतिक गठजोड़ बनाने के लिए भी जुट गई हैं। राजनीतिक गठबंधन के इस दौर में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निषाद पार्टी से गठबंधन कर रखा है। लेकिन संजय निषाद कई बार बीजेपी को अहसज कर चुके हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने आरक्षण वाला अपना वादा अभी तक नहीं निभाया है। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर बीजेपी अपना कर्तव्य पूरा नहीं करती है तो गठबंधन पर भी इसका असर हो सकता है। कहने का मतलब है कि संजय ने इशारो ही इशारो में भारतीय जनता पार्टी को आंखे दिखानी शुरू कर दी है। वहीं अपना दल (एस) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं साथ ही अनुप्रिया पटेल ने 200 सीटों पर अपनी पार्टी के विधानसभा प्रभारी बना रही है, जिससे कयास लगाए जा रहे हैं कि अपना दल भाजपा से ज्यादा सीटें हासिल करने की कोशिश करेगा। शह-मात के इस खेल में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी से भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कमल का साथ छोड़कर अखिलेश की साइकिल पर सवार हो चुके हैं और 2022 में उनकी पार्टी सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। वहीं अखिलेश यादव भी कह चुके हैं कि उनकी पार्टी छोटे दलों के साथ मिलकर यूपी का चुनाव लड़ेगी।

अब बात करते है बहुजन समाज पार्टी की। बसपा प्रमुख गठबंधन को लेकर कह चुकी है कि उनकी पार्टी यूपी की 403 विधानसभा सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ेगी, उनका कहने का मतलब है कि वह किसी भी पार्टी को अपने साथ मिलाने के लिए तैयार नहीं है। उनका कहना है कि इस बार पार्टी राज्य की जनता से गठबंधन करेगी। गठबंधन की राजनीति के इस दौर में कांग्रेस पिछले तीन दशक से यूपी की सत्ता से बाहर है। राज्य में फिर से पार्टी को खड़ा करने के लिए कांग्रेस पार्टी योगी सरकार पर लगातार हमले कर रही है जिसकी बागडोर पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी ने थाम रखी है। वह लगातार यूपी के लोगों के बीच जाकर संवाद कर रही हैं। प्रियंका की इस मेहनत में पार्टी के कार्यकर्ताओं में कुछ हद तक एक नई ऊर्जा का संचार भी किया है। वहीं कांग्रेस का कहना है कि उसने गठबंधन के लिए सभी के लिए अपने दरवाजे खोल ऱखे है। अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि कांग्रेस के दरवाजे पर कौन जाएगा?


यूपी में विधानसभा चुनाव को लेकर कुछ महीने बचे हैं लेकिन कांग्रेस गठबंधन के नाम पर अभी तक अकेली खड़ी नजर आ रही है। गठबंधन आज की राजनीति के जरूरत है लेकिन कोई भी दल कांग्रेस का साथ देने के लिए तैयार होता नहीं दिखाई दे रहा है। छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल जिनकों कांग्रेस ने यूपी चुनाव ऑब्जर्वर बनाया हुआ है। उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि अभी हमारा राज्य में किसी भी दल से गठबंधन नहीं है सब के लिए पार्टी के दरवाजे खुले है और हम छोटे दलों को साथ लेकर चलेंगे। अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि वह दल कौन से हैं जिनके सहारे कांग्रेस पार्टी राज्य में सत्ता की वापसी के मुंगेरीलाल वाले सपने देख रही है। वहीं सपा और बसपा पहले ही कह चुकी है कि वह कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाएंगी। कांग्रेस को उस समय और भी बड़ा झटका लगा जब उनकी पूर्व सहयोगी रही राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चौधरी ने कांग्रेस से किनारा करते हुए कहा दिया कि उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ किसी भी प्रकार का तालमेल नहीं बिठाएगी। अब आरएलडी प्रमुख पूरी तरह मन बना चुके हैं कि वह अखिलेश के साथ मिलकर बीजेपी को राज्य की सत्ता से उतारेंगे। यहां तक की यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव भी कह चुके हैं कि 21 नवंबर को आरएलडी के साथ गठबंधन की घोषणा करेंगे। कहने का मतलब है कि अब यूपी में पांच-सात ऐसे दल है जिन पर कांग्रेस की निगाह है। इनमें जन अधिकार पार्टी, कृष्णा पटेल की अपना दल, हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन, अनिल सिंह चौहान की जनता क्रांति पार्टी, राष्ट्रीय उदय पार्टी, , राष्ट्रीय उपेक्षित समाज पार्टी और रामकरण कश्यप की भारतीय वंचित समाज पार्टी शामिल हैं। इन पार्टियों में से एक भी पार्टी ऐसी नहीं है जिसका व्यापक जनाधार हो इनमें औवैसी केवल अकेले ऐसे नेता है जो कि मुस्लिम मतदाताओं को कुछ हद तक अपनी तरफ मोड़ सकते है, लेकिन इसका कुछ ज्यादा फायदा कांग्रेस को नहीं होगा, क्योंकि ज्यादातर यूपी में मुस्लिम समाजवादी पार्टी को अपना समर्थन देते आए हैं और उसके बाद मायावती दूसरे नंबर की मुस्लिम लोगों की पसंद रही हैं। यहां पर इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि कांग्रेस का जो परंपरागत वोट रहा है वह उसके पास से खिसक चुका है। अब कांग्रेस के पास सीमित विकल्प बचे हैं जिसके सहारे वह यूपी के विधानसभा चुनाव में उतरेगी।

कहते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल इसमें कुछ भी हो सकता है। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि कांग्रेस के साथ कौन-कौन से दल उसके सहयोगी बनते हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस के पास यूपी में खोने के लिए कुछ है भी नहीं, लेकिन इन विधानसभा चुनावों को प्रियंका गांधी के राजनीतिक भविष्य के रूप में भी देखा जा रहा है।

(लेखक- आईआईएमटी कॉलेज में पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय में कार्यरत हैं।)

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