मध्यप्रदेश में आई बाढ़ के चपेट में 6 पुल पानी में बहे, कुछ साल पहले ही हुआ था पुलों का निर्माण
मध्यप्रदेश में ऊफनाईं नदियों की चपेट में 6 पुल आ गए, जो पूरी तरह ध्वस्त हो गए है। बता दें कि 2 दिन में सिंध और चंबल के 6 पुल ज़मीं-दोज हुए है। पुल का निर्माण बीते 5-11 साल पहले हुआ था। इनमें 35 साल पुराने 2 पुल शामिल है। इन पुलों के टूटने पर लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव ने जांच कमेटी बना दी है। बता दें कि अधिक पानी होने के कारण बांध को खोल दिया गया था जिसके कारण नदियों का पानी बेकाबू हो गया। अभीतक मिली जानकारी के मुताबिक बाढ़ में बहे 4 पुलों की लागत 33.55 करोड़ रुपए थी। मंगलवार व बुधवार को सिंध के प्रकोप में रतनगढ़ धाम, सेवढ़ा, नरवरल और गोराघाट का पुल बीच से ढ़ह गया। दूसरी तरफ सीप नदी के तेज बहाव में श्योपुर और बड़ोदा पुल क्षतिग्रस्त हुए है। मुख्य अभियंता संजय खांडे ने बाढ़ से क्षतिग्रस्त पुलों की प्रारंभिक रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। बता दें कि 1982 में बने दतिया से सेवढ़ा को जोड़ने वाले पुल की निशानदेही नहीं बची है। जानकारी के मुताबिक सिंध नदी पर बने 3 पुल 2017 में बना रतनगढ़ धाम पुल, 2010 में इंदरगढ़ और 2013 में गोरई पुल के ध्वस्त होने पर सवाल उठ रहे है। सेतु मंडल एमपी सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया। समिति को 7 दिन में जांच रिपोर्ट तलब करने का आदेश दिया गया है। समिति में एग्जिक्यूटिव इंजीनियर सेतु संभाग-सागर पीएस पन्त और एसडीओ सेतु संभाग भोपाल अविनाश सोनी को तत्काल जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। जल संसाधन विभाग के रिटायर चीफ इंजीनियर टीआर कपूर के अनुसार बड़े पुल निर्माणाधीन में 100 वर्ष का रिकॉर्ड बनाया जाता है। विभागीय प्रावधानों के नियमों के अनुसार बाढ़ की उच्चतम स्थिति का जायजा लेकर वर्टिकल गेप रखा जाता है। बाढ़ के पूर्व अनुमान की मात्रा के आधार पर 150 से 1500 मिलीमीटर के बीच होता है। बीजेपी के पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा ने सरकार पर सवाल खड़ा किया कि लापरवाही का नतीजा आज प्रदेश भुगत रहा है। पुराने पुल खड़े रहे जबकि नए ज़मींदोज हो गए।