पनामा पेपर्स क्या हैं और क्यों आजकल चर्चा में है

पनामा पेपर्स

पनामा पेपर्स

करीब 5 साल पहले दुनियाभर में तहलका मचाने वाले पनामा पेपर्स लीक एक बार फिर चर्चा में है। इस बार बॉलीवुड अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन के कारण मामला सुर्खियों में आ गया है। पनामा पेपर्स लीक से जुड़े मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने ऐश्वर्या राय से साढ़े 5 घंटे पूछताछ हुई। पनामा पेपर्स Süddeutsche Zeitung नाम का एक जर्मन अखबार है। जो इस अखबार को मोस्सैक फोंसेका नाम की एक कंपनी के 1.15 करोड़ से ज्यादा लीक्ड डॉक्यूमेंट हासिल हो गए। इस अखबार ने ये सभी डॉक्यूमेंट इंटरनेशनल कंसॉर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट के साथ शेयर किए। ICIJ दुनियाभर के पत्रकारों और मीडिया हाउसेज का एक संस्थान है।

ICIJ ने ये दस्तावेज दुनियाभर के मीडिया संस्थानों के साथ शेयर किए जिनकी लंबी जांच-पड़ताल हुई। मोस्सैक फोंसेका कंपनी पनामा में रजिस्टर्ड थी इसलिए इन दस्तावेजों को पनामा पेपर्स कहा जाता है। उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के मध्य में स्थित एक पनामा देश है। इसी देश की एक कंपनी मोसेक फोंसेका। बता दें कि इस कंपनी की स्थापना 1977 में हुई थी। इससे दुनियाभर मे 2 लाख कंपनियां जुड़ी हुई हैं, जो इसके लिए एजेंट की तरह काम करती हैं। मोसेक फोंसेका के ही करोड़ों दस्तावेज लीक हुए थे, जिन्हें पनामा पेपर्स लीक कहते है।


दरअसल, इन पेपर्स में संबंधित व्यक्तियों से जुड़ी वित्तीय जानकारियां और अवैध लेनदेन का रिकॉर्ड रहता है। इन लोगों ने टैक्स चोरी और बाकी वित्तीय लेनदेन से जुड़ी पाबंदियों से बचने के लिए ऑफशोर कंपनियों में गैरकानूनी निवेश किया। ये कंपनियां ऐसे देशों में खोली गईं, जिन्हें टैक्स हैवन्स कहा जाता है। अर्थात, कंपनियों के मालिकाना हक और लेनदेन पर टैक्स का कोई चक्कर ही नहीं है।


वहीं मोस्सैक फोंसेका पनामा की एक लॉ कंपनी थी। आसान भाषा में समझें तो अगर आपके पास बहुत सारा पैसा है, तो ये कंपनी उसे सुरक्षित रूप से ठिकाना लगाने में आपकी मदद करती है। ये आपके नाम से फर्जी ऑफशोर कंपनी खोलती है। ऑफशोर कंपनियां वो होती हैं, जिनका रजिस्ट्रेशन किसी दूसरे देश में किया जाता है और ये कारोबार किसी दूसरे देश में करती हैं। इस तरह की ज्यादातर कंपनियां गुमनाम होती हैं। इनका मालिक कौन है, किसके पैसे लगे है, जैसी सभी बातें गुप्त रखी जाती है। यानी, आप मोस्सैक फोंसेका को फीस दीजिए और वो आपके नाम से सीक्रेट और आसान टैक्स सिस्टम वाले देशों में फर्जी कंपनियां बना देगी।

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