देश के अन्नदाता मेहनत करने के बाद आखिरकार गरीब क्यों है

अन्नदाता
किसान को भगवान का रूप कहा जाता है। जो दिन रात जी तोड़ मेहनत कर सभी देशवासियों के पेट को भरता है। भारत समेत कई देशों में किसानों के आर्थिक हालात अभी भी ठीक नही है। हर साल बड़ी संख्या में किसान को ख़ुदकुशी करने का मामला सामने आता है। आपके मन में भी एक सवाल उठता होगा कि किसान इतनी मेहनत करने के बावजूद भी गरीब क्यों है।
तो आपको बता दें कि देश के आजाद होने के बाद से ही देश में कृषि उत्पादों को कम कीमत पर ही उपलब्ध कराने की नीति रही है। वहीं सरकारें बदलती गईं, लेकिन किसानों की स्थिति में कोई सुधार देखने को नहीं मिला। लगातार किसान कर्ज में दबते चले गए। कृषि उपज की अंतरराज्यीय बिक्री पर रोक लगा दी गई। जबकि कीमत और भंडारण से लेकर कई ऐसे कानून बने, जिनसे किसानों के लिए स्थिति जटिल होती गई। वहीं मंडी कानून भी किसानों को लूटने का एक माध्यम बन गया।
दरअसल,नए कृषि कानून इन समस्याओं को हल करने में सक्षम हो सकते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। अब हमें आगे की राह देखनी होगी। हमें समझना होगा कि अब पूरा विश्व एक बाजार होता जा रहा है। किसी भी देश में कहीं से भी अनाज, फल, सब्जी खरीदना-बेचना संभव हो गया है। भारत के किसानों को दुनिया के किसानों से मुकाबला करना है तो जो तकनीक, बीज दूसरे देश के किसान इस्तेमाल करते हैं, उनकी उपलब्धता भारत के किसानों तक भी होनी चाहिए।
इसी तरह खेती की जमीन को लेकर लगी कई तरह की पाबंदियां भी खत्म करने की जरूरत है। वहीं खेती की जमीनें खरीदने-बेचने के नियमों में बदलाव होना चाहिए, जिससे कृषि अपनाना और छोड़ना, दोनों ही उनके लिए आसान हो सके। इससे कृषि क्षेत्र को आकर्षक बनाना संभव होगा। अपने देश में फल-सब्जियों का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा खराब हो जाता है। वहीं जल्दी खराब होने वाली उपज के भंडारण की सुदृढ़ व्यवस्था नहीं होने से ऐसा होता है। गोदाम और कोल्ड स्टोरेज की विधिवत व्यवस्था नहीं होने के कारण अधिक उत्पादित उपज किसान फेंकने के लिए बाध्य हो जाते हैं। इस संबंध में सही नीति बने तो निवेश की राह भी आसान हो सकती है। विदेशी कंपनी के निवेश के साथ ही तकनीक भी आती है। गांवों में पैदा होने वाली उपज का वहीं भंडारण और प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) होने लगे, तो बड़े पैमाने पर वहां रोजगार के अवसर भी बनेंगे। वहीं शहरों की ओर युवाओं का पलायन भी काफी कम होगा।