जिद पर अपनी अड़ चलो

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अमित शर्मा
(वरिष्‍ठ पत्रकार)
वो 7 जून सन् 1893 की रात थी. एक भारतीय युवा वकील अपने एक केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका के डरबन से प्रिटोरिया जा रहा था। उसके पास फर्स्ट क्लास का टिकट था लेकिन रंगभेद के कारण गोरे ट्रेन अधिकारियों ने उसे जबरदस्ती सेकेंड क्लास में भेजने की कोशिश की। जब उसने विरोध किया तो उसे ट्रेन से नीचे उतार दिया गया। वो रात उस युवक ने पीटरमेरिट्जबर्ग स्टेशन पर ठंड से ठिठुरते हुए काटी। उस रात उस युवक ने मन में एक जिद पाली। जिद थी कि इन अत्याचारों को अब और सहन नहीं करना है। उसकी इस जिद ने पूरा इतिहास बदल दिया। जी हां, वो युवक था मोहन दास करमचंद गांधी। और हमारे देश को अंग्रेजों से आजाद कराने में उनकी क्या भूमिका रही ये सबको पता है। उस रात अगर उन्होंने अपने मन में एक जिद नहीं पाली होती तो वो मोहनदास से शायद कभी भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी नहीं बनते।

यूं तो जिद को एक नकारात्मक भाव के रुप में लिया जाता है। लेकिन यही जिद अगर किसी सकारात्मक कार्य के लिए हो तो ये आपकी ताकत बन जाती है। लोग जिद छोड़ने की सलाह देते हैं। लेकिन इस जिद का सही इस्तेमाल करना अगर आपको आता है, तो ये जिद आपसे बड़ा से बड़ा कार्य कराने की क्षमता रखती है।

यूं तो अपने मन में आप कई चीजें करने की सोचते हैं। लेकिन अक्सर होता ये है कि थोड़ी ही मुश्किल में आप अपना इरादा बदल लेते हैं। लेकिन अगर आपने जिद ठान ली है तो फिर उस काम को पूरा किए बिना आप पीछे नहीं हटते। जीवन में आप कई बार मुश्किल हालात में घिर जाते हैं। ऐसा लगता है कि सब ओर घना अंधेरा छाया हुआ है। ऐसे में अगर आपको अपनी जिद का सही इस्तेमाल करना आता है तो मुश्किल से मुश्किल हालात भी बदलने में देर नहीं लगती।

जिद का मतलब है अपने इरादे पर अडिग रहना। एक बार जो सोच लिया उसे हर हाल में पूरा करना। वक्त और हालात चाहे कितनी भी मुश्किलें राह में खड़ी करें। बस आगे की ओर ही बढ़ते जाना।

ऐसे में सवाल ये उठता है कि इस जिद को अपने अंदर लाया कैसे जाए, लेकिन उससे पहले नकारात्मक औऱ सकारात्मक जिद में अंतर समझ लेना जरुरी है। दरअसल दोनों ही तरह की जिद समान ही होती है अंतर सिर्फ उसके नतीजे में होता है। अगर आपकी जिद का नतीजा अच्छा निकलता है तो वो जिद सकारात्मक है। नतीजा अगर बुरा निकलता है तो वो जिद नकारात्मक है। ऐसे में नकारात्मक और सकारात्मक जिद के इस अंतर को समझ लेना जरुरी है क्योंकि अगर आपने किसी गलत चीज के लिए जिद ठान ली तो वो खुद के लिए नुकसानदायक भी साबित हो सकती है।

जिद की ये प्रवृत्ति दरअसल हम सब में होती है। हर बच्चे में जिद करने की आदत होती है। ये जरुर है कि बच्चा नकारात्मक और सकारात्मक जिद के अंतर को नहीं समझता। जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, इस जिद पर समझदारी का आवरण चढ़ाते जाते हैं। फिर दिल के किसी कोने में इसे चुपचाप बैठ जाने पर मजबूर कर देते हैं. ऐसे में आपको करना ये है कि अपने अंदर के बच्चे को एक बार फिर जगाना है। दिल के कोने से बाहर निकाल कर अपनी जिद की प्रवृत्ति को सामने लाना है। ये जरुर ध्यान रखना है कि आपकी जिद का नतीजा आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने वाला हो। बस बाजी आपकी मुट्ठी में होगी।
बढ़ चलो तो बढ़ चलो
जिद पर अपनी अड़ चलो
हौंसलों को ओढ़ के
डर को पीछे छोड़ के
धरा बनेगी हमसफर
पुकारता तेरा सफर

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