आत्मनिर्भरता की मंजिल दूर की कौड़ी

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कोरोना वैश्वि़क महामारी के बाद अस्त व्यस्त और पस्त हो चुकी अर्थव्यववस्था में जान फूंकने की दरकार है। यद्यपि केंद्र सरकार देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहले ही 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा कर चुकी है। निस्संपदेह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकल के लिए वोकल बनकर उसे ग्लोबल बनाने का सपना चुनौतियों को अवसर में बदलने का मूल मंत्र साबित हो सकता है। पर यह जितना दूर से सहज दिख रहा है, वह उतना ही जटिल है। भारत के आत्मंनिर्भर बनने की राह में अनेक कांटे और चुनौतियां हैं। सरकार को सबसे पहले उन चुनौतियों से दो चार होना पड़ेगा तभी लोकल की स्वीकार्यता और व्यापकता को धरातल पर उतारा जा सकता है।
आत्मुनिर्भरता की राह में बाधाओं का विश्लेषण करने के पूर्व मैं सबसे पहले आपको आत्मिनिर्भर अभियान के पैकेज की कुछ विशेषताओं से वाकि‍फ कराना चाहूंगा। कोरोना वायरस महामारी की सबसे बड़ी मार किसानों पर पड़ी है। आत्मनिर्भर भारत अभियान में 3 करोड़ किसानों को 4.22 लाख करोड़ रुपये का कृषि ऋण दिया गया है। किसानों को यह ऋण 3 महीने तक वापस करने की आवश्य।कता नहीं है। इस अभियान में केंद्र सरकार ने किसानों को मार्च और अप्रैल के बीच 86,600 करोड़ रुपये के 63 लाख ऋण कृषि क्षेत्र में दिए हैं। इसके साथ ही सहकारी बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक को नाबार्ड ने 29,500 करोड़ रुपये दिए हैं। इसके अलावा विभिन्न राज्यों को ग्रामीण क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रेक्चर के विकास के लिए 4200 करोड़ की मदद दी है।
कोरोना काल के बाद प्रवासी मजदूर और शहरी गरीबों को परेशानी न हो, इसके लिए भी कई उपाय किए गए हैं। इसमें प्रवासी मजदूर के रहने और खाने के लिए स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फंड के रकम के उपयोग की इजाजत दी गई है। केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकारों को 11000 करोड़ रुपये दिए हैं जिससे कि वह स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फंड की मदद से इनके लिए काम कर सकें।
लॉक डाउन के दौरान अनेक प्रवासी मजदूर अपने गांव वापस चले गए हैं। मजदूरों को घर पर ही काम मिल सके इसके लिए सरकार ने मनरेगा के माध्यम से मदद की पहल की है। 13 मई तक मनरेगा में 14.62 करोड़ मानव दिवस काम बनाया गया। इस तारीख तक वास्तव में मनरेगा पर खर्च 10,000 करोड़ हो चुके थे। इसके तहत देश के करोड़ों लोगों ने काम के लिए आवेदन किया। केंद्र सरकार ने श्रमिकों के लिए नये लेबर कोड की व्यकवस्थाय की है। इस कोड से पूरे देश में एक जैसी न्यूनतम मजदूरी की व्यवस्था करने में मदद मिलने की उम्मीद है। साथ ही सभी श्रमिकों को समय पर भुगतान कराने में भी मदद मिलने की आशा है। इस समय न्यूनतम वेतन का फायदा सिर्फ 30 फ़ीसदी श्रमिक उठा पाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का भारत को आत्मनिर्भर बनाने का सपना देश और समाज हित में है। आत्मरनिर्भरता से आशय है कि भारत की निर्भरता निर्मित आया‍तित माल पर समाप्त हो जाए। भारत अपने देशवासियों की जरूरतों को पूरा कर सके। इसके अलावा वह विश्व के अनेक देशों को भारतीय निर्मित उत्पादों का निर्यात भी कर सके। हालांकि इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सरकार के समक्ष अनेक बाधाएं और चुनौतियां हैं।
वैश्विक महामारी कोरोना के बाद भारतीय अर्थव्यंवस्था बेजार हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा है कि आत्मरनिर्भरता के भवन का निर्माण करने के लिए पांच स्तंभो-अर्थव्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर, सिस्टम, डेमोग्राफी और डिमांड की जरूरत होगी। नेशनल पाइपलाइन (एनआईपी) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जनसंख्या के मामले में भारत विश्व में दूसरे, अर्थव्यवस्था में पांचवें और इंफ्रास्ट्रेक्चर के मामले में 70 वें स्थादन में है। कोरोना महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था बदहाल है। इंफ्रास्ट्रेक्चर और तकनीकी सिस्टम को तो सुधारना ही होगा, लेकिन देश में वीआईपी कल्चर और नौकरशाही के मकड़ जाल में उलझ चुके कार्य व्यवहार को सुधारना सहज नहीं होगा।
समरथ को नहीं दोष गोसाईं वाली कहावत भारत की नौकरशाही पर सटीक बैठती है। सामर्थवान और अर्थवान लोगों को सरकारी सिस्टीम में में घुलने-मिलने में कोई परेशानी नहीं होती। भ्रष्ट‍ नौकरशाहों और राजनेताओं की मनमानी सिस्टम में इतनी गहरी जड़ें जमा चुकी है कि उसको जादू की छड़ी घुमाकर हल नहीं किया जा सकता। आज अगर किसी भारतीय को कोई उद्योग शुरू करना हो तो उसकी राह में कांटे ही कांटे हैं। इंस्पेक्टर राज और अधिकारियों के रवैये से तंग आकर कई बार एक आम आदमी या तो भ्रष्टो लोगों की मुट्ठियां गर्म करने को मजबूर हो जाता है अथवा थक हार कर उद्योग लगाने का अपना निर्णय बदल देता है।
गौरतलब है कि हमारे देश में अनेक उपकरण, मशीनें और कच्चा माल आज भी विदेशों से आयात करना पड़ता है। अगर आयात की जाने वाली मशीनों को यहीं पर बनाया जाता है तो यहां पर बनाने वाले उत्पादों की लागत बढ़ जाएगी। दूसरी ओर, महामारी के चलते देश का प्रवासी मजदूर बड़े शहरों को छोड़कर अपने गांवों को चले गए हैं। ऐसे में अनेक उद्योग बंद हो गए हैं। सभी मजदूरों को शहरों में फिर से वापस लाना सहज नहीं होगा। इसके लिए सरकार को बेहद सशक्त नीति बनानी पड़ेगी। लघु और सूक्ष्मए उद्योगों को लगाने के लिए युवा पीढ़ी की एक फौज तैयार करनी पड़ेगी और यह काम देश के गांव से ही शुरू करना चाहिए। लेकिन उसके पहले गांवों में यातायात, बिजली, पानी और इंटरनेट की सुविधा के इंफ्रास्ट्रक्चर को सशक्त करना होगा और साथ ही वहां कच्चे माल की उपलब्धताट और निर्मित माल के लिए बाजार सुलभ कराना होगा। भारत को आत्मीनिर्भर बनाने का लक्ष्य कठिन जरूर है पर नामुमकिन नहीं है। दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ अनवरत प्रयास करने से भारत आत्मननिर्भरता की मंजिल को प्राप्त् कर सकता है।
(लेखक आईआईएमटी न्यूज के संपादक हैं)

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