अंगूरों के लिए मारामारी

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डॉ वेद व्‍यथित
जंगल में अंगूर लटका दिए और ऊंचे लटका दिए। अंगूर बड़े चमकदार हैं रसीले हैं देखने में सुंदर हैं और इतना ही नहीं जो इन्हे पाएगा वह स्वर्ग जैसा आनंद पाएगा तो स्वाभाविक है सब उसकी और लपकते सो जंगल के सारे दादा टाइप जानवर उन अंगूरों की ओर लपके और लपके भी ऐसे जैसे कि यदि अंगूर नहीं मिले तो समझो दुनिया में इनके आलावा कुछ भी नहीं है और यदि अंगूर नहीं मिले तो मरने तक की नौबत आ जाएगी।

सब तो फिर क्या था सब के सब अंगूर पाने के लिए भाग दौड़ में लग गए। कुछ ने कहा हमे सबसे पहले ले लेंगे फिर हम को भी दे देंगे परन्तु दुसरे के बेवकूफ हैं जो इतनी आसनी से बेवकूफ बन जाएंगे आखिर वे भी पुराने और मजे हए खिलाड़ी हैं उन्होंने ने कहा कि हम कम नहीं हैं हमे अंगूर खाने का खूब अनुभव है और बहुत अच्छे से खाने आते हैं इसलिए अंगूर हम ही खाएंगे। परन्तु उन के भी साथ और आगे पीछे अन्य भी बहुत सारे थे जो सबके सब अंगूर खाने के लिए दौड़ पड़े।
इस भागदौड में भगदड़ मच गई भगदड़ मची तो लोग अंगूर खाने के लिए एक दूसरे से आगे निकलने के लिए एक दूसरे को कुहनी मर कर पीछे करने की जुगाड़ करने लगे वे एक दुसरे को आगे बढ़ने से रोकने की हर सम्भव कोशिश में लग गए एक दूसरे के कपड़े खीचने लगे उन्हें पीछे करने के लिए वे कई तरह के हथकंडे अपनाने लगे और कुछ लोग दूसरों को पीछे करने के लिए अपनी टांग भी अड़ाने लगे।
बहुत देर तक लोग दौड़ भाग करते रहे आखिर दौड़ भागने की भी एक सीमा होती है इस कारण सबके सब हांफने लगे परन्तु कोई भी अपने आप को अंगूर पाने की दौड़ से बाहर करने को तैयार नहीं और हांफते- हांफते भी अंगूर पाने की लालसा छोड़ने को कोई तैयार नहीं परन्तु अंगूरों का आकर्षण कोई छोड़ने को तैयार नहीं है। परन्तु आखिर अंगूर पाने की कोई समय सीमा भी तो हो तो वह अवधि अब समाप्ति की ओर आ गई परन्तु अंगूरों तक कोई नहीं पहुंच नहीं पाया और आयोजक ने अंगूरों को वहां से हटाने का फैसला कर लिया और अंगूर किसी के हाथ नहीं आए तो सब के सब आयोजक को ही एक स्वर में कोसने में लग गए। परन्तु अंगूर इतनी आसानी से थोड़ी मिलते हैं परन्तु आशा तृष्णा मर गई शरीर तो फिर भी अंगूरों की आशा में अभी भी वे अपनी-अपनी किए हुए हैं। हे भगवान तूने ऐसे अंगूर क्यों बनाए जिन के लिए वे सब सिद्धांतों को भी ताक पर रख दिया। पर भगवान तो मजे लेते रहते हैं परन्तु भगवान ने तो अंगूर बनाए हैं तो उसने ही विवेक भी बनाया है इसलिए अंगूरों का इतना मोह ठीक नहीं है परन्तु ऐसे भाषण से कुछ नहीं होता मोह तो हमेशा ही रहेगा और अंगूर भी रहेंगे अब सोचना तो हमे हैं की कोशिश यह हो कि ऐसे अंगूर ही समाप्त किए जाएं और उनकी और दौड़ने वालों के भी पर कतरे जाएं ताकि अंगूरों के लिए ऐसे भगदड़ न मचे।

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