कोरोना के नियमों का पालन बंद होने के बाद बढ़ गया अस्थमा का खतरा

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छाया सिंह : नई दिल्ली- अस्थमा के मरीजों के लिए कोरोना का सक्रमण बेहद घातक है। अस्थमा के कोरोना संक्रमित मरीजों में मत्युदर भी अधिक देखी नई थी, लेकिन कोरोना काल में इस संक्रमण से बचाव के लिए लागू कई तरह की पाबंदियों के कारण अस्पतालों में अस्थमा के मरीजों की संख्या काफी कम हो गई थी। चिकित्सयों का कहना है कि कोरोना से बचाव के नियमों का पालन बंद होने के बाद अस्थमा का खतरा बढ़ गया हैं।

खासतौर पर लोगों ने मास्क पहनना बंद कर दिया है, जबकि वातावरण में धूल अधिक होने के कारण इन दिनों अस्पतालों में अस्थमा के मरीज 35 से 40 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। इसलिए अस्थमा और सांस संबंधी बीमारियों से पीडित मरीजों को अभी और ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत है। आकाश हेल्थकेयर के पल्मोनरी मेडीसीन के विशेषज्ञ डा. अक्षय बुधराजा का कहना है कि कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन और कई तरह की पाबंदियों के कारण लोग घर से ज्यादा नहीं निकल रहे थे। घर से बाहर निकलने पर लोग मास्क का अनिवार्य रूप से इस्तेमाल कर रहे थे।

इस वजह से प्रदूषण, धूल इत्यादि के सम्पर्क में अस्पतालों में अस्थमा के मरीजों की संख्या बहुत कम हो गई थी। लेकिन, अब कोरोना संबंधी कोई पाबंदी नहीं है। मास्क पहनना अनिवार्य तो किया गया है और इसके लिए जुर्माना का प्रविधान भी है, फिर भी लोग मास्क को लेकर लापरवाही बरत रहे है। इसी वजह से कुछ समय से अस्थमा के मरीजों में वृध्दि देखी जा रही है। इसका कारण यह है कि वातावरण में धूलकण अधिक है। मास्क न पहनने के कारण ही लोगों को एलर्जी और खांसी की समस्या हो रही है। खासकर अस्थमा मरीजों को ज्यादा परेशानी हो रही है और वे अस्थमा के अटैक के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं।

उन्होंने कहा कि तीन मई को विश्व अस्थमा दिवस होता है।

गंगाराम अस्पताल के चेस्ट मेडीसीन के विशेषज्ञ डा. बाबी मल्होत्रा ने बताया कि प्रदूषण, वातावरण में मौजूद धूलकण इत्यादि के कारण अस्थमा की बीमारी बढ़ती हैं।

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