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क्रांतिकारियों के बलिदान की कहानी

क्रांतिकारियों के बलिदान की कहानी

क्रांतिकारियों के बलिदान की कहानी

छाया सिंह। मैं उनको शब्द चढ़ाता हूँ हिन्द जिनकी जान था, नाम हिंदुस्तानी जिनका मज़हब हिंदुस्तान था, रक्त से रंगते थे धरती को अरियों की ललकार पर जय हिंद का नारा सदा लिखा था जेलों की दीवार पर और बदन पे बँधी थी बेड़िया  दिल मगर आज़ाद था, और रक्त के अंतिम कतरे में भी भारत ज़िंदाबाद था। देश के हिफाजत के लिए एक जवान हस्ते-हस्ते अपनी जान न्योछावर कर देता है। इन्हीं जवानों को सम्मान देने और उनके बलिदान को याद करने के लिए हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है। इस दिवस पर भारत की गौरव, शान और भारत की आज़ादी के लिए लड़ने वाले भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को श्रद्धांजलि दी जाती है।आज ही के दिन 1931 में अंग्रेजी सरकार ने भारतीय युवा क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था। इस बलिदान के बाद पूरे देश के युवाओं में इंकलाब का खून उबल पड़ा था। साल 1928 में भारत आए साइमन कमीशन का विरोध करने पर लाला लाजपत राय की अंग्रेज पुलिस ने लाठियां बरसाकर हत्या कर दी। इसका बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने ब्रिटिश पुलिस अफसर जॉनसांडर्स की हत्या कर दी। इस हत्या के बाद अंग्रेजों के कान खोलने के लिए भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ ब्रिटिश असेंबली में 8 अप्रैल, 1929 को महज धमाका करने वाला बम फेंका और खुद को गिरफ्तार कराया और करीब 2 साल बाद इनको फांसी की सजा सुनाई गई।उनके शहादत को देश का हर व्यक्ति सच्चे मन से याद करता है यहीं कारण है इन वीरों को श्रद्दंजली देने के लिए भारत सरकार इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाती है।

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