पद्मश्री सम्मानित किसान चाची नहीं जाएगी इंडिया गॉट टैलेंट

किसान चाची

किसान चाची

जिले के सरैया प्रखंड के आनंदपुर गांव की 65 साल की किसान चाची उर्फ राजकुमारी देवी की गिनती देश की उन महिला कृषकों में होती है, जिसने अपनी लगन से न सिर्फ अपने बल्कि अपने जैसी हजारों महिलाओं की जीवन बदल दी। उन्होंने सफलता का यह मुकाम वर्षों के संघर्ष से पाया है। साइकिल पर अपने बनाए कृषि प्रोडक्ट्स लेकर इलाके में घूमने वाली ‘किसान चाची’ तबीयत खराब होने की वजह से ‘इंडियाज गॉट टैलेंट’ में नहीं जाएंगी। फेफड़े की बीमारी से ग्रसित राजकुमारी देवी ने अब अपनी तबीयत में सुधार बताते हुए दैनिक भास्कर से बातचीत में बताया कि अचानक तबीयत खराब हो जाना परिवार और समाज के लिए बेहद ही तकलीफ देने वाला रहा। वेंटिलेटर से हटने के बाद बेटे ने बताया कि कई जगह से जल्दी स्वस्थ होने की लोगों ने कामना की है। अब मैं अपने स्वास्थ्य के लिए डॉक्टर की परामर्श ले रही हूं।


बता दें कि 15 जनवरी को किसान चाची की तबीयत खराब हुई थी। उन्हें गैस्टिक की समस्या हुई। इसके बाद परिजन उन्हें लेकर सरैया में एक हॉस्पिटल में ले गए। प्रारंभिक इलाज के बाद उन्हें मुजफ्फरपुर रेफर किया गया। यहां भी उनकी हालत में सुधार नहीं हुई तो पटना रेफर कर दिया गया।’ परिजनों का कहना है कि उनके पाचन तंत्र में समस्या आ गई थी।


किसान चाची का जीवन बेहद ही सरल पर चुनौतीपूर्ण रहा। देश के खास किसानों में से एक राजकुमारी देवी ने न सिर्फ अपना जीवन बदला, उन्होंने कई महिलाओं का जीवन बदल दिया। एक समय था जब दो वक्त की रोटी के लिए उन्हें जूझना पड़ता था। समाज ने उनका बहिष्कार भी किया, लेकिन वे अपने इरादों पर अडिग रहीं और किसान के साथ-साथ एक कुशल व्यापारी के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई। उन्होंने खुद खेती की। साथ ही अचार बनाना शुरू किया। फिर पूरे गांव में साइकिल पर घूम-घूमकर अचार बेचने लगीं। यह समाज को मंजूर नहीं था। समाज में अपनी पहचान बनाने में उन्हें काफी वक्त लगा।
साइकिल से सफर करने वाली किसान चाची का जीवन काफी चुनौतीपूर्ण रहा है। 1974 में शादी के बाद उन्हें कई वर्षों तक संतान नहीं हुआ। इसको लेकर उन्हें ससुराल में प्रताड़ित किया जाने लगा। 1983 जब बेटी का जन्म हुआ तब भी उन्हें ताने सुनने पड़े। अंत में मजबूरन उन्हें घर छोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्होंने पहले पति के साथ खेती में हाथ बंटाया। तब भोजन के लिए भी उन्हें तरसना पड़ता था।

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