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भगवान विष्णु ने लिया था देवकी के गर्भ से जन्म, कहलाए कृष्ण कन्हैया

छाया सिंह। जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रुप मे मनाया जाता हैं। मथुरा के राजा कंस की एक बहन थी जिसका नाम देवकी था। देवकी का विवाह वासुदेव से हुआ था, इस विवाह के पश्चात् कंस स्वंय ही अपने रथ से देवकी को ससुराल छोड़ने के लिए जा रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई कि जिस बहन को वह इतने प्रेम से विदा करने स्वंय जा रहा है, उसी बहन का आठवां पुत्र उसका वंध करेगा। इस बात को सुनते ही कंस बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो गया तभी वह देवकी को मारने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा तभी वासुदेव ने कहा कि वह देवकी को कोई भी नुकसान न पहुचाएं। वह स्वंय ही देवकी की आठवीं संतान को कंस को सौंप देगें। इसके बाद कंस ने वासुदेव और देवकी को जेल में बंद करवा दिया।कारागार में ही देवकी ने सात संतानों को जन्म दिया और कंस ने सभी को एक-एक करके मार दिया। इसके बाद जैसे ही देवकी फिर से गर्भवती हुईं तभी कंस ने कारागार का पहरा और भी ज्यादा बढ़ा दिया। तब भाद्रपद माह के कृष्णी पक्ष की अष्टकमी को रोहिणी नक्षत्र में कन्हैया का जन्म हुआ। तभी श्री विष्णु ने वासुदेव को दर्शन देकर कहा कि वह स्वय ही उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वासुदेव जी उन्हें। वृंदावन में अपने मित्र नंदबाबा के घर पर छोड़ आये यह सबकुछ सुनने के बाद वसुदेव जी ने वैसा ही किया।वासुदेव ने जैसे ही कन्हैया को अपनी गोद में उठाया कारागार के ताले खुद ही खुल गए। पहरेदार अपने आप ही गहरी निद्रा में चले गए फिर वसुदेव जी कन्हैया को टोकरी में रखकर वृंदावन की ओर चले। कहते हैं कि उस समय यमुना जी पूरे ऊफान पर थी तब वसुदेव जी महाराज ने टोकरी को सिर पर रखा और यमुना जी को पार करके नंद बाबा के घर पहुंचे। वहां कन्हैया को यशोदा जी के साथ पास रखकर मथुरा वापस लौट आए।

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