शिक्षा नीति 2020 में समाहित है समावेशी भारतीयता -प्रो. आशा शुक्ला

शिक्षा

कानून पर आज भी लोगों का दृढ़ विश्वास है. समावेशी एवं समरस समाज की स्थापना के लिए देश में कई कानून बने हैं. हम सभी को भारतीय दृष्टि से समझने की आवश्यकता है. विश्वविद्यालय ज्ञान सृजन का केंद्र हैं. कानून की पुस्तकों से हम जीवन में बहुत कुछ सीखते हैं। विधिशास्त्र हमारी मानसिक चेतना को जाग्रत कर समाज और राष्ट्र से जोड़ती है। एक मजबूत एवं समुन्नत राष्ट्र की मजबूत धुरी न्याय व्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था है. किसी भी राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था को विकसित कर वैश्विक गौरव को प्राप्त कर सकते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के विधि पाठ्यक्रम में भारतीयता के पक्षों को जोड़कर हमें गांवों की तरफ देखने की जरुरत है। किसी भी देश की परिस्थिति को समझने के लिए उस देश की न्याय एवं कानून व्यवस्था को समझना आवश्यक होता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन में विधि विषय में महत्वपूर्ण सुझाव शिक्षा नीति को सशक्त बना सकता है. हमें गाँव, समाज और राष्ट्र केंद्रित शोध और नवाचार करने की विशेष जरुरत है ताकि हम राष्ट्र पुनर्निर्माण में सहायक हो सकें।. उक्त बातें डॉ. अम्बेडकर: वैचारिक स्मरण पखवाड़ा के अंतर्गत डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय एवं भारतीय शिक्षण मंडल के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य विधि पाठ्यक्रम में प्रस्तावित संशोधन’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार को संबोधित करते हुए ब्राउस कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने बतौर अकादमिक कार्यक्रम श्रृंखला अध्यक्ष कही।


कुलपति प्रो शुक्ला ने उबोधन को आगे बढ़ते हुए कहा कि हमारी विधिक शिक्षा विश्वस्तरीय होनी चाहिए। विधि विज्ञान का पाठ्यक्रम व्यापक मानवीय सरोकार, मानवीय गरिमा और सामाजिक न्याय स्थापित करनी वाली होनी चाहिए। प्रो. बलराज मालिक ने बीजवक्तव्य देते हुए कहा की पाठ्यक्रम में न्याय के सिद्धान्त की संकल्पना को समावेशी तौर पर लागू किए जाने वाला पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय, संस्थाओं में तैयार किया जा रहे हैं। न्याय दुनिया के लोगों के होने और रहने के बीच समन्वय का शास्त्र है। विधि अध्ययन का समावेशी पाठ्यक्रम तैयार करते हुए विभिन्न भाषाओं में भी उसे लाने प्रयास किया जाना चाहिए। विधि अध्ययन पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में तकनीकी के बेहतर उपयोग की भी आवश्यकता है। जिस पर निरंतर हम सभी कार्य कर रहे हैं।


विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो. आर. एन. शर्मा, पूर्व कुलपति, आईएएसई विश्वविद्यालय जोधपुर, ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति अनुरूप पाठयक्रम तैयार करने के क्रम में विधिशास्त्र को समाजवैज्ञानिक संदर्भ को प्रमुखता से शामिल करने की बात कही। विधि का अध्ययन न्याय के सिद्धान्त और व्यवहार के समन्वय को महत्व देना होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 नैतिक, आध्यात्मिक एवं मूल्यनिष्ठता को पाठ्यक्रम के जरिये विद्यार्थियों तक ले जाने की जरूरत है। और यह हम शिक्षकों को ही करना होगा।


डॉ. मो. शरीफ आलम, प्राचार्य लॉ कॉलेज पटना ने राष्ट्र निर्माण में हम सबकी भूमिका के लिए शिक्षा व्यवस्था के विस्तार को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बताया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति अनुरूप पाठ्यक्रम बनाने की प्रक्रिया में भारत सहित दुनिया के प्रमुख विधि विज्ञान पाठ्यक्रमों को भी देखते हुए बनाया जाना, उसे समृद्ध किया जाएगा। परंपरागत और गैर-परंपरागत तरीकों से कैसे विधि का ज्ञान विस्तार हो। विद्यार्थी और शिक्षक रेसिओ बहुत महत्वपूर्ण पहलू है।


डॉ. अर्चना राका, अध्यक्ष विधि विज्ञान विभाग, देवी अहिल्या राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप पाठ्यक्रम निर्माण में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ भी समन्वय करते हुए कार्य किए जाने पर ज़ोर दिया। भारतीय ज्ञान परंपरा का विकास नई पीढ़ी को जोड़कर और समृद्ध ढंग से किया जा सकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर इस तरह की निरंतर हो रही चर्चा और विमर्श क्रियान्वयन को आसान करेगी।
स्वागत उद्बोधन देते हुए प्रो. शैलेंद्र मणि त्रिपाठी, ब्राउस ने विधि विज्ञान को लोकतांत्रिक व्यवस्था और समावेशी विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण विषय बताया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. मनोज कुमार गुप्ता, शोध अधिकारी डॉ. अम्बेडकर पीठ ने किया।

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