विधायक और सांसद के केसों पर सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी, राज्य सरकार हाईकोर्ट की बिना परमीशन नहीं करेंगी बचाव

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को नोटिस जारी करते हुए कहा कि क्रिमिनल केस से लिप्त विधायक और सांसदों के केसों को कोई भी राज्य सरकार वापस नहीं ले सकती हैं। इतना ही नहीं पुराने केसों को फिर से बहाल करने के आदेश जारी कर दिए हैं। चीफ जस्टिस का कहना है कि हाई कोर्ट की बगैर अनुमति के राज्य सरकार अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल नहीं कर सकती है। बता दें कि अपराधी विधायकों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित याचिका के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला लिया है। कोर्ट का कहना है कि सितंबर 2020 के बाद वाले सभी अपराधिक केस पुनः बहाल किए जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्वनी उपाध्याय ने यह पिटीशन दाखिल की थी। एवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विनीत सरन चीफ जस्टिस की तीनों बेंचों ने याचिका पर अपना फैसला सुनाया था। इसी दौरान सीजेआई ने सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को पेंडिंग केस और निपटाए गए केस का चार्ट पेश करने का आदेश भी दिया। सुप्रीम कोर्ट के सहयोगी वकील विजय हंसरिया का कहना है कि एमपी-एमएलए के मामलों की स्टेटस रिपोर्ट प्रवर्तन निदेशालय से मिल चुकी है। वहीं सीबीआई ने अभी तक रिपोर्ट जस्टिस फॉर इंडिया के सामने पेश नहीं की। इसी दौरान चीफ जस्टिस ने सीबीआई को फटकार लगाई। सीबीआई के पक्ष में सफाई पेश करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुसार मेहता ने रिपोर्ट सब्मिट करने के लिए समय की मांग की। वहीं सीबीआई के डायरेक्टर ने टीम को सतर्क करते हुए जल्द रिपोर्ट पेश करने के आदेश जारी किए हैं। बता दें कि यूपी सरकार ने विधायक और सांसदों के 76 केस वापस लिए हैं, वहीं कर्नाटक में 61 वापस लिए हैं। करीब 13 प्रदेशों के सांसद और विधायक ऐसे मामलों में शामिल हैं। हंसरिया ने सुप्रीम कोर्ट में दलील पेश करते हुए कहा कि क्रिमिनल केस से लिप्त प्रतिनिधियों को हाईकोर्ट की बिना परमीशन नहीं बचाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई कोर्ट और स्पेशल कोर्ट को एमपी-एमएलए के अग्रिम केसों की सुनवाई जारी रखने का आदेश दिया है। बता दें कि इस मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी। अगली सुनवाई में सीबीआई जांच रिपोर्ट पेश कर देगी।

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