देश की राजनीति और मेरे घर की महाभारत

डॉ वेद व्यथित
(सुप्रसिद्ध साहित्यघकार)
Email- dr.vedvyathit@gmail.com
भाई भरोसे लाल कई दिन बाद जब मुझसे मिलने आये तो बड़े झुंझलाये हुए थे। मैंने उनकी झुंझलाहट का जानना चाहा तो वे मुझ पर ही भड़क उठे और बोले कि तुम भी क्या सच में ही मेरी झुंझलाहट का कारण जानना चाह रहे हो या तुम भी नेताओं और पत्रकारों की ही भांति कुछ और जानना चाह रहे हो जैसे वे कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। फिर पत्रकार जन उन की बाइट चलाने लगते हैं तो फिर वे कुछ और ही कहने लगते हैं कि ऐसा तो नहीं कहा परन्तु मैंने भाई भरोसे लाल को आश्वासन दिया कि भाई हम तो बचपन से ही लंगोटिया यार हैं और दूसरी बात मैं और आप दोनों में से कोई भी नेता नहीं है जो सुबह कुछ कहे कि सरकार आप के साथ बनाएंगे और शाम को नहीं अपितु दोपहर को ही कह दे कि उन के साथ हम सरकार कैसे बना सकते हैं।
मेरी मित्रता भरी बातें सुन कर भाई भरोसे लाल थोड़े से शांत और आराम से बैठ गए तो मैंने उन की झुंझलाहट का कारण जानना चाहा तो वे एकदम बम की तरह फट पड़े और बोले कि क्या बताऊं आजकल श्रीमती जी को आज-कल घर में ही नेता बनने का शौक लग गया है, वे शायद घर पर ही नेता बनने की प्रेक्टिस कर रही हैं। मैंने आज तुम्हारी भाभी सो पूछा था कि आज क्या सब्जी बनाओगी तो उन्होंने कहा कि बहुत दिन हो गए आप को आज पनीर की सब्जी बना कर खिलाऊंगी।

मुझे बाजार जाना था तो मैंने उनसे पूछा भी कि बाजार से कुछ लाना है क्या ? मेरा मतलब था कि पनीर या अन्य कुछ सामान बाजार से मंगवाना हो तो बता देना, परन्तु उन्होंने कहा सब है कुछ नहीं मंगवाना है। जब मैं बाजार गया तो वहां नत्थू हलवाई के यहां गर्मागर्म कचौड़ियां बन रहीं थी। मेरा मन भी बहुत था दो कचौड़ी तो खा ही लूँ परन्तु फिर तुम्हारी भाभी की बात याद आ गई कि उन्होंने कहा था कि आज वह पनीर की सब्जी बनाएंगी और कचौड़ी खा लीं तो फिर रोटी नहीं खाई जाएगी मैं अपने मन को काबू कर के घर आ गया। परन्तु घर आ कर जब खाना खाने लगा तो मेरे सामने पनीर की सब्जी तो दूर सब्जी में पनीर का एक टुकड़ा तक नहीं था, बल्कि लौकी की पानी वाली सब्जी थी।

जिसे देख कर मेरा माथा ठनक गया लौकी की सब्जी को देख कर नहीं अपितु उनके कहने के अनुसार कि वे आज पनीर की सब्जी बना कर खिलाएंगी। पनीर की सब्जी की कल्पना ले कर घर लौटा परन्तु यहां कटोरी में लौकी की पानी वाली सब्जी थी। मैंने पूछा कि घर में पनीर का क्या हुआ ? यदि नहीं था तो मुझे बता देतीं, मैं बाजार से ले आता,परन्तु तुमने तो कहा था कि कुछ नहीं लाना पनीर और पनीर की सब्जी का मसाला सब है फिर पनीर क्यों नहीं बनाया। तो श्रीमति बड़े आश्चर्य से बोली कि पनीर ! पनीर कोई गमलों में उगता है ?
यह बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया कि आप ने ही तो कहा था कि पनीर बना कर खिलाऊंगी तो वे बोली मैंने कब कहा था ऐसा मुझे अपनी पत्नी की बात सुन कर अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि ये ऐसा भी कह सकती हैं। ऐसी बात कोई नेता करे तो कोई आश्चर्य नहीं होता परन्तु जब घर में ऐसी बाते होने लगें या राजनीति होने लगे तो निश्चित यह चिंता का कारण तो होगा ही। मैंने उन्हें फिर से सुबह की बात याद दिलाई कि आप ने ही तो कहा था, परन्तु वे बड़े आश्चर्य से बोलीं -अच्छा।
केवल इतना ही नहीं उन्होंने बेटे को भी कोफ्ते की सब्जी बनाने के लिए था तो उस ने भी अपनी माँ को यह बात याद दिलाई कि आप मुझे कोफ्ते की सब्जी बना कर खिलाएंगी। पर उन्होंने इस बात को भी अनदेखा कर दिया। बोली कि लौकी की सब्जी जहर होती है क्या चुपचाप खा लो। इसी बीच बेटी भी बोल पड़ी कि मम्मी आप ने मुझे भी तो आलू गोभी की सब्जी बनाने के लिए कहा था और बना दी लौकी की सब्जी। तब उन्होंने उसे भी कहा कि तो क्या हो गया जरूरी थोड़ी है कि जो मैं कहूँ वही करूँ। मेरी मर्जी मैं किसी से कुछ भी कहूँ और कुछ भी करूँ।
तब मेरी बेटी ने कहा कि मम्मी आप पहले तो ऐसी नहीं थी जैसी अब महाराष्ट्र में सरकार बनने की बहस सुन कर हो रहीं हैं। जब से वहां सरकार बनने की बातें शुरू हैं, तब से ही आप ऐसे बातें करने लगी हैं। पिछले दिनों में आप बहुत बदल गईं हैं। जैसे वहां पार्टी प्रमुख एक पार्टी से कुछ कहते हैं और दूसरी से कुछ कहते हैं,और पत्रकार वार्ता यानि प्रेस कॉफ्रेंस में कुछ और बताने लगतें हैं। और अगले ही दिन अपने धुर विरोधियों से भी जा कर मिल आते हैं। जिस से दूसरे दलों के पसीने छूटने लगते हैं।

मुझे भी लगा कि मेरी बेटी सच कह रही है। तो मैंने भी उस की बात का समर्थन करने की हिम्मत जुटा ली। परन्तु वे फिर नेता की ही भांति उसे कहने लगीं कि तू इन की बातों में मत आना तुझे गोभी सब्जी ही तो खानी है। इस में कौन सी बड़ी बात है शाम को ही आलू गोभी की सब्जी बना दूंगी। परन्तु बिटिया तुरंत बोली कि मम्मी अब मैं आपकी बातों में आने वाली नहीं हूँ जो समाचार चैनल आप देखतीं हैं वे मुझे भी देखने पड़ते हैं, और अब मैं भी थोड़ी बहुत राजनीति समझ लेती हूँ। कि नेताओं की बात पर कभी भरोसा मत करना जैसे वे सुबह कुछ कहते हैं, शाम और दोपहर को कुछ और कहने लगते हैं और अगले दिन तो बिलकुल ही उलटा कहते हैं इस लिए मम्मी आजकल आप भी नेताओं की तरह करने लगी हैं। कहती कुछ हैं और करती कुछ और हैं। अब तो मैं तब भी एक बार विश्वास नहीं करूंगी, जब मेरी थाली में आलू गोभी की सब्जी आ जाएगी। अपितु पहले उसे चख कर देखूँगी और जब पूरा पता चल जायेगा कि यह आलू गोभी ही है, तब ही मानूंगी नहीं तो कुछ पता नहीं आप सरसों के साग के लिए ही कह दो कि यह आलू गोभी की सब्जी है। तब हम ने अपनी पत्नी को समझते हए कहा कि देखो जी इस राजनीति को घर में मत घुसने दो नहीं तो हमारे देश पर पड़ रहे दुष्परिणामों की भांति हमारे बच्चों पर भी इस का बुरा असर पड़ेगा। जब बेटे की शादी हो जाएगी तो वह भी जब तुम से इस तरह राजनीति करेगा तो आप को कितना बुरा लगेगा और यदि आप भी उस के साथ राजनीति करोगी तो वह आप से अलग हो जायेगा या आप उस का घर बर्बाद करोगी।
हमे कोई मंत्री पद थोड़ी मिलना है और न ही हम मुख्यमंत्री बनने वाले हैं। आप तो हमारे घर में वैसे भी प्रधान मंत्री बनी ही हुई हैं। इस लिए घर में सुख शान्ति प्रेम और सौहार्द बना रहे हम सभी को इस के लिए काम करना चाहिए। राजनेता कुछ भी करें वे हमारे आदर्श नहीं हो सकते हैं हमारे आदर्श पुरुष तो वो बलिदानी महापुरुष हैं जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। हमे उनसे सीख लेनी चाहिए। ये नेता तो कूर्सी के लिए कुछ भी कर सकते हैं और न ही ये देश की आने वाली पीढ़ियों का ही भला कर रहे हैं। इस लिए घर में राजनीती मत करो और प्रेम प्यार से रहो और सब को रहने दो।

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