जेएनयू छात्रों का आंदोलन, पुलिस ने किया लाठी चार्ज

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र कोई लक्ष्मण नहीं हैं कि जो लकीर खींच देंगे वह लक्ष्मण रेखा बन जाएगी। स्वामी विवेकानंद की मूर्ति पर पत्थर चलाने के बाद तो कतई नहीं। हालांकि इस बात में कदापि संदेह नहीं है छात्रों पर लाठी चलाना कभी सही नहीं हो सकता लेकिन हर विरोध, हर प्रदर्शन और हर गूंज की एक तासीर होती है। सरकार ग़लत है तो उससे डायलॉग किया जा सकता था, सवाल किया जा सकता था,लेकिन हमेशा अपने बौद्धिक दायरे को श्रेष्ठतम मान कर दूसरों को खारिज कर देने के बाद तो आपका ही पक्ष हल्का होगा।

महिला पत्रकारों को धक्का मार कर जताया गया विरोध किसी भी स्थिति में विरोध नहीं कहा जा सकता है, वह स्तरहीनता है। बेशक पूंजीवाद ख़त्म होना चाहिए, बाकी देश के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे शिक्षण संस्थान में गरीब बच्चे पढ़ते हैं, उनके लिए भी विरोध कीजिये, धरना दीजिये, लाठी खाइए। गरीब छात्र केवल जेएनयू में तो नहीं हैं, बाकी संस्थान में पढ़ने वाले गरीब छात्रों की फीस में बढ़ोतरी भी तो ग़लत है, उस समय भी इतना ही गुस्सा दिखाइए। ठीक ऐसे ही एक दिन मशाल उठाइये और हर महंगे संस्थान की नींव को फूंक कीजिये, सरकार के ताबूत में प्रतिरोध की कील ठोंक दीजिये।

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