जावेद अख़्तर के विवादित बयान पर शिवसेना ने किया आरएसएस का समर्थन

अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा किए गए सत्ता परिवर्तन पर भारत के कुछ नागरिकों ने असहज बयान जारी कर माहौल खराब करने की कोशिश शुरु कर दी है। पिछले दिनों मशहूर गीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने तालिबानियों द्वारा उत्तपन्न की गई परिस्थितियों पर चर्चा करते हुए एक बयान जारी किया था। जिसमें उन्होंने तालिबानियों की तुलना आरएसएस, बजरंग दल और वीएचपी जैसे हिंदूवादी संगठनों से की थी। एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि जिस तरह तालिबान एक इस्लामी देश बनाना चाहता है तो ऐसे लोग भी हैं जो हिंदू राष्ट्र चाहते हैं। ये सभी लोग एक जैसी विचारधारा के ही हैं भले ही ये मुसलमान हों, ईसाई हों, यहूदी हों या हिंदू हों। उन्होंने आगे कहा कि तालिबान बर्बर है जो कि निंदनीय है। लेकिन जो लोग बजरंग दल, आरएसएस और वीएचपी जैसे संगठनों का समर्थन करते हैं, वो सब एक तरह के ही हैं।”
जावेद अख्तर के इस बयान के बाद बजरंग दल, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के लाखों समर्थकों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। जिसके बाद भाजपा के कई समर्थकों ने बीते दिन उनके जूहू स्थित आवास के बाहर हंगामा किया। लोगों की मांग है कि आरएसएस हमेशा मुश्किल में फंसे लोगों की मदद करता है। ऐसे में जावेद अख्तर आरएसएस की तुलना तालिबान से कर सकते हैं। उन्हें अपने इस बयान के लिए माफी मांगनी होगी।
वहीं, भाजपा नेता राम कदम ने भी जावेद अख्तर द्वारा दिए गए बयान पर आपत्ति जताते हुए वीडियो संदेश जारी किया है। उन्होंने धमकी देते हुए कहा है कि जब तक जावेद अख्तर हाथ जोड़कर माफी नहीं मांगते तब तक उनकी या उनके परिवार से संबंधित किसी भी सदस्य की फिल्म रिलीज नहीं होने दी जाएगी।
गौरतलब है, भाजपा द्वारा जावेद अख्तर का विरोध किए जाने के पश्चात शिवसेना ने भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद का समर्थन करते हुए उन पर हमला हमला बोला है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के अंक में लिखा है कि अफगानिस्तान का तालिबानी शासन न सिर्फ समाज बल्कि मानव जाति के लिए सबसे बड़ा खतरा है। पाकिस्तान, चीन जैसे कई अन्य देशों ने समर्थन किया है क्योंकि इन देशों में मानवाधिकार, लोकतंत्र, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कोई मान नहीं है। हिंदुस्तान हर तरह से जबरदस्त सहिष्णु हैं।
शिवसेना ने आगे कहा है कि संघ की तुलना तालिबान से करना ठीक नहीं है। अगर आरएसएस तालिबानी विचारोंवाला होता तो तीन तलाक कानून नहीं बनाए जाते। अगर संघ की विचारधारा तालिबान जैसी होती तो लाखों मुस्लिम महिलाओं को आजादी की किरण नहीं दिखती।

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