कृषि-समाज की उपेक्षा करती मीडिया

मीडिया – मीडिया जिसकी नज़र से हम इस दुनिया को देखते हैं समझते हैं। या फिर यूं कहें कि मीडिया जो हमारी सोच व समझ को दिशा देती है, माइंडसेट करती है। इसके स्वरूप को यदि देखें तो बड़ी तकलीफ़ होती है कि अपने गाँवव खेत-खलिहान जो भारत की पहचान हैं। जहां पर भारत की आत्मा निवास करती है। उसी की अब कोई चर्चा नहीं है, कोई ख़बर नहीं है। मीडिया चाहे वह टीवी हो रेडियो हो या अख़बार हो, सामान्यतया यहाँ जो कुछ भी हम देखते, सुनते व पढ़ते हैं, वह सब राजनीति, अपराध जैसे विषयों पर केन्द्रित हैं। इसमे राजनीति, फिल्म, संगीत, खेल, शहर, व्यापार को लेकर एक स्थायी कवरेज है। एक निश्चित स्थान इन सभी के लिए रखा गया है। लेकिन गांवों व किसानों से जुड़े विषय व मुद्दे गायब जैसे हैं। गाँव व खेत-खलिहान जो असल भारत की छवि है पहचान है, मीडिया में उसकी कोई जगह नहीं है। गाँव व किसान के मुद्दे अब कोई मुद्दे नहीं रहे। बड़ी अजीब बात है कि मुख्यधारा मीडिया के टेलीवीजन मे न्यूज़, बिज़नेस, सिनेमा, संगीत, खेल, फ़ैशन, कार्टून आदि पर तमाम अलग-अलग चैनल हैं। परंतु कृषि को लेकर एक भी चैनल नहीं है जो कृषि व ग्रामीण के विषयों तथा समस्याओं को लेकर समर्पित हो। यही हाल रेडियो व अख़बार मे भी है। अख़बार मे कई पेज राजनीति, खेल, फिल्मी दुनिया, अर्थजगत, देश-दुनिया, शहर को लेकर तो समर्पित है पर कृषि पर यहाँ भी कोई निश्चित व स्थायी स्पेस नहीं है। और यह अभी ही नहीं अपितु लंबे समय से ही मीडिया में कृषि विषय उपेक्षित रहा है।

हालांकि, विगत सन 2015 मे एक नया चैनल (डीडी कृषि) जोकि चौबीस घंटे कृषि को लेकर समर्पित होने का दावा के साथ भारत सरकार द्वारा लॉंच किया गया। लिहाजा,इस खुशखबरी से सारे ग्रामीण व कृषि से जुड़े लोगो में आशा की एक किरण जगी। एक संभावना दिखी कि अब वह सहज लाभान्वित होंगे। लेकिन उनकी यह उम्मीद जल्दी ही टूट गई,और संभावना मात्र संभावना ही बनी रह गई। आज जब इसचैनल को देखते हैं तो पाते हैं कि यह भी बस नाम का ही है, बस औपचारिक मात्र। एक तो इसकी समय सीमा, जोकि संकल्पित था 24 घंटे कृषि को लेकर, पर अब अधिकांश समय इसमे मनोरंजन व ड्रामा ही चलता रहता है। दूसरा इसके कृषि विषय-वस्तु (एग्रिकल्चरल कंटेंट) प्रभावशाली नहीं है।

दरअसल, भारत देश की छवि एक कृषि-प्रधान देश के रूप में सर्वविदित है, और एक विशाल समाज (करीब 65% आबादी) इस क्षेत्र से जुड़े रहकर अपनी जीविका चला रहे हैं। इस तरह भारत में कृषि जीवकोपार्जन का सबसे बड़ा स्रोत है। फलस्वरूप कृषि देश की सम्पूर्ण अर्थ-व्यवस्था में दखल देती है तथा उसकी किस्मत का निर्धारण भी करती है। जहां कुछ लोग इसे आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी मानते हैं, तो कुछ लोग भारत के दो-तिहाई नागरिकों के लिए जीवकोपार्जन का साधन। देश की शान जवान व किसान का नारा इस बात का सूचक है। ऐसे मे कृषि के प्रति मीडिया की बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इसके महत्व को भलीभाँति समझे और समाज के इस बड़े वर्ग को उपेक्षित करना बंद करे। पर अफ़सोस मीडिया इन सब चीजों को आज भुला बैठा है। मीडिया इन पहलुओं पर अंधेरा कर रखा है, करोड़ों व्यक्तियों की रोजी-रोटी व लाभ हानि से जुड़े कृषि को गौण कर दिया है। हालात यह है कि आजकल रोज़मर्रा की ख़बरों मे कृषि कोई ख़बर नहीं है। लिहाजा, कृषि के प्रति मीडिया का ऐसा रवैया बेहद चिंताजनक है।

संदीप कुमार गुप्ता
सहेयक प्रोफेसर
IIMT कॉलेज, ग्रेटर नोएडा
EMail: sandyreporter12@gmail.com

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