प्रेंग्नेंसी में ब्लीडिंग होने के क्या है कारण

प्रेंग्नेंसी
प्रेग्नेंंसी के शुरुआती दिन बेहद नाजुक होते हैं और इस समय मिसकैरेज होने का भी खतरा सबसे ज्यािदा बना रहता है। इस समय गर्भवती महिलाओं को हल्कीस ब्लीनडिंग या स्पॉ टिंग हो सकती है। कंसीव करने के बाद ब्लीाडिंग होने पर, अक्सार महिलाएं घबरा जाती हैं क्योंरकि ब्लीहडिंग को मिसकैरेज का संकेत माना जाता है। गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में ब्लीैडिंग या स्पॉजटिंग होना, हमेशा किसी परेशानी का संकेत नहीं होता है। ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्हेंज प्रेग्नेंरसी के शुरुआती दिनों में ब्ीत डिंग या स्पॉगटिंग होने के बाद नॉर्मल प्रेग्नें सी रहती है और स्वेस्थो शिशु को जन्मह देती हैं। इसमें हर गर्भवती महिला को अपना एक-एक कदम बहुत सावधानी पूर्वक बढ़ाना होता है। अपने खानपान, घर-ऑफिस के काम, जीवनशैली को फॉलो करने के तरीके में बहुत सतर्कता बरतने की जरूरत होती है। ऐसा नहीं करने पर महिला के साथ गर्भ में पल रहे शिशु के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकता है। कई बार कुछ महिलाएं प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में उल्टी, मतली, सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, चिड़चिड़ापन, पेट, कमर में दर्द आदि समस्याओं से परेशान रहती हैं। लेकिन, कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने की समस्या नजर आती है। ब्लीडिंग आने की समस्या को हल्के में नहीं लेना चाहिए. यदि आपको भी ब्लड स्पॉट या ब्लीडिंग नजर आए, तो इसे डॉक्टर से तुरंत बताएं. कई बार गर्भपात होने पर भी यह समस्या हो सकती है।
प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने की संभावना कभी भी हो सकती है। ब्लीडिंग के चांसेज और कारण प्रेग्नेंसी की तिमाही में अलग-अलग होते हैं। किसी को पहले तीन महीने में ब्लीडिंग होती है, तो उसका मतलब है कि इंटरनल कोई ब्लड क्लॉटिंग हो रही है, प्रेग्नेंसी कमजोर हो या फिर नाल अच्छी तरह से बच्चेदानी के साथ ना जुड़ी या चिपकी हो, जिसके कारण कोई जमाव होने के कारण शुरुआत में ब्लीडिंग हो सकती है। इसे थ्रेटेंड अबॉर्शन कहते है। फिर मिड ट्राइमेस्टर (4-6 महीना) में भी ब्लीडिंग होने के अलग कारण हो सकते हैं। पहली तिमाही में जो क्लॉटिंग हुई, वो सही नहीं हुई या बढ़ गई है, तो इससे दूसरी तिमाही में भी ब्लीडिंग हो सकती है. यदि किसी को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है, ट्विन प्रेग्नेंसी है, तो ऐसे मामलों में भी ब्लीडिंग किसी भी दौरान हो सकती है। ऐसे में प्रेग्नेंट महिलाओं का अपना खास ध्यान रखना चाहिए।
यदि 6-7 महीने में ब्लीडिंग हो रही है, तो हो सकता है प्लेसेंटा या नाल बहुत नीचे हो. ऐसे मामलों में मरीज की जान भी जा सकती है। प्लेसेंटा लो है, तो काफी सर्तक रहना चाहिए। डॉक्टर के बताए दिशानिर्देशों का पालन करना होगा। प्रेग्नेंसी के आखिरी तीन महीने में यदि नाल सेपरेट हो जाए, तो भी रक्तस्राव हो सकता है। इसे अब्रप्शियो प्लेसेंटा कहा जाता है. यह गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है, इससे शिशु की जान भी जा सकती है। कुछ मरीजों में हल्की-फुल्की ब्लीडिंग, डिस्चार्ज होना नॉर्मल है, लेकिन डॉक्टर से एक बार कंसल्ट जरूर कर लें, ताकि आगे कोई खतरा ना बढ़ जाए।