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पानी की कमी होने के कारण आदिवासी करते थे पलायन

पानी

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निधि वर्मा। प्रदेश के शाहाबाद तहसील क्षेत्र के पूरमपुर के मेहनतकश आदिवासीयों ने देसी तकनीक से सिंचाई का ऐसा जुगाड़ किया कि वे करीब 1 हजार बाघा से ज्यादा जमीन पर रबी की फसल ले रहे हैं। पूरमपुर निवासी नाथूराम भील की मानें तो करीब चार-पांच साल पहले तक खेतों में पानी नहीं होने से रबी की फसल नहीं होती थी। ऐसे में रोजगार के लिए परिवार के साथ पालन के लिए मजबूर होना पड़ता था।


इस बीच पांच-छह ग्रामीण ने श्रावन खोह के पहाड़ से बहकर जाने वाले बारिश के पानी को रोकने व इस पानी को पेयजल और सिंचाई के लिए उपयोग में लेने का रास्ता निकाला। गांव के लोगों ने थोड़ी ऊंची जगह पर पत्थरों और मिट्टी के कच्चे कोट में पॉलीथिन का उपयोग कर पहले करीब 5 फीट ऊंचाई और 50 फीट की चौड़ाई का एनिकट तैयार किया। इसके बाद एनिकट से गांव तक डेढ़ किमी चौड़ी करीब तीन किमी लंबी नाली तैयार की है।
50 फीट ऊंचाई और 50 फीट लंबाई के पक्के एनिकट निर्माण पर करीब 40 लाख रुपए और डेढ़ फीट चौड़ी तीन किमी लंबी पक्की नहर के निर्माण में करीब 90 लाख रुपए का खर्च अनुमानित है। ग्रामीणों ने अपने स्तर पर बरसाती पानी रोकने का जुगाड़ किया है, यह अच्छी पहल है। हालांकि कच्चा एनिकट बारिश में बह भी जाता है।


गांववालों ने बताया कि नहर के रास्ते में पड़ने वाले नाले पर भी पत्थरों, मिट्टी का कच्चा कोट बनाकर ऊंचाई दी। साथ ही पानी का रिसाव नहीं हो इसलिए पॉलीथिन भी बिछाई। इसके बाद यह पानी तीन किमी लंबी नली से खेतों तक पहुंचाया। खास बात यह है कि जुगाड़ से तैयार इसी एनीकट से वन्यजीवों की भी प्यास बुझ रही है।

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