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नोएडा प्राधिकरण पर उठे सवाल : कहा बिल्डरों को टुकड़ों में जमीन बेचने को मिली है छूट

प्राधिकरण

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नोएडा बडे – बडे बिल्डींग और इमारतों के लिए मसहुर है। प्राधिकरण के मास्टर प्लान 2021 में स्पोर्ट्स सिटी की कोई श्रेणी नहीं थी। इसे मास्टर प्लान 2031 में शामिल किया गया, लेकिन प्राधिकरण ने बिना मंजूरी के 2008 में ही नोएडा में स्पोर्ट्स सिटी की योजना निकाल दी। इसके तहत 2011 से 2016 तक 33.44 लाख वर्गमीटर में चार प्लॉट का आवंटन किया गया। इसमें भी खेल गतिविधियों को लेकर अब तक कोई बात नहीं बन पाई है। पूरी

भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक ने शुक्रवार को विधान परिषद के पटल पर रखी रिपोर्ट में नोएडा प्राधिकरण की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश सरकार ने 2009 में आई मंदी के प्रभाव से बिल्डरों को उबारने के लिए जमीन के उप विभाजन की छूट दी थी।

यह योजना दो साल यानी 2011 तक के लिए ही थी, लेकिन प्राधिकरण ने इस राहत को लगातार जारी रखा। इसका परिणाम यह रहा कि बिल्डरों ने जमीनों को अलग-अलग टुकड़ों में बांटकर छोटे बिल्डरों को बेच दिया जिसका नुकसान हजारों फ्लैट खरीदारों को हुआ। साथ ही, सेक्टर-150, 78, 79 जैसी स्पोर्ट्स सिटी के घोटाले की नींव भी यहीं से पड़ी।प्राधिकरण को जमीन आवंटन की मूल राशि भी नहीं मिली और बिल्डरों ने मोटी कमाई की।

कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे बिल्डरों ने भी जमीनों को टुकड़ों में बांटना शुरू कर दिया, जिन्हें इसकी अनुमति नहीं थी यानी नियमों के तहत केवल बड़े बिल्डरों को ही उपविभाजन का मौका दिया गया था। आठ मामलों में ऐसे बिल्डरों ने जमीनों का उप-विभाजन किया जिनकी नेटवर्थ केवल एक करोड़ थी, लेकिन उन्हें 501 करोड़ रुपये की जमीन को टुकड़ों में बांटने की अनुमति दी गई।

इसका परिणाम है कि बिल्डरों ने जमीन के टुकड़े कर करोड़ों कमाए और प्रोजेक्ट से बाहर निकल गए। वहीं, जिन दूसरे बिल्डरों को जमीन दी उन्होंने प्रोजेक्ट को पूरी तरह से फंसा दिया। इससे हजारों खरीदार आज भी बिना रजिस्ट्री और अधूरे प्रोजेक्ट में फंसे हुए हैं।

एस्क्रो अकाउंट का क्लॉज न हटता तो पैसे नहीं फंसते
बिल्डरों को जमीन आवंटन के दौरान 2006 में एस्क्रो अकाउंट का एक क्लॉज बनाया गया। इसका मकसद यह था कि खरीदारों से मिले पैसे को प्राधिकरण और बिल्डरों के खाते में संयुक्त तौर पर जमा कराया जाए, लेकिन 2006 में नोएडा के सीईओ ने इस क्लॉज को पूरी तरह से हटा दिया। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि उस दौरान बोर्ड को इस बाबत सूचित नहीं किया गया। इसके बाद प्राधिकरण को बकाया नहीं देने पर मार्च 2020 में 113 में से 85 बिल्डर डिफॉल्टर घोषित कर दिए गए। अगर उस समय इसे नहीं हटाया जाता तो नोएडा के पास भी पैसे होते और बिल्डर प्राधिकरण की रकम लेकर नहीं डूबते।

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