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पद्मश्री द्वारा सम्मानित किए गए, नालंदा के 70 वर्षीय कपिल देव प्रसाद

सुमित राज। जनवरी के पहले गुमनामी की जिंदगी जी रहे कपिलदेव प्रसाद अचानक चर्चा में आ गए। 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री देने की घोषणा की गई। इसमें देशभर के कई हस्तियों के नाम भी शामिल हैं, उन्हीं नामों में एक नाम नालंदा से भी जुड़ा है
कपिलदेव प्रसाद पद्मश्री पुरस्कार पाने वाले नालंदा के पहले शख्स हैं। लगभग 70 साल की उम्र में टेक्सटाइल के क्षेत्र में उन्हें पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की गई। सम्मान समारोह में कपिल देव की पत्नी लाखो देवी तथा उनके इकलौते पुत्र सूरजदेव कुमार भी साथ मे थे। तीनों के आने-जाने और रहने तथा भोजन का प्रबंध गृह मंत्रालय द्वारा कराया गया।कपिलदेव प्रसाद करीब 6 दशक से बुनकरी से जुड़े हैं।
उनके दादा शनिचर तांती ने पहले इसकी शुरुआत की थी, उसके बाद पिता हरि तांती ने इस हुनर को आगे बढ़ाया।
जब वे 15 साल के थे, तब बुनकरी को रोजगार बनाया। अब उनका बेटा सूर्यदेव उनका सहयोगी है। साल 2017 में आयोजित हैंडलूम प्रतियोगिता में खूबसूरत कलाकृति बनाने के लिए देश के 31 बुनकरों को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया था, इनमें नालंदा के कपिलदेव प्रसाद बिहार को गौरव दिलाने वाले एकमात्र बुनकर हैं। नालंदा के बिहारशरीफ के बुनकरों के पर्दे और बेडशीट कभी राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ाते थे। प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल के बाद आर्डर मिलने बंद हो जाने से यह परंपरा रुक गई। कपिलदेव प्रसाद की मानें तो आज के बाजार के लिहाज से बुनकरों द्वारा बनाई गई सारी चादर और पर्दे की ब्रांडिंग और मार्केटिंग नहीं होने से ही स्थिति खराब है। आज भी यह कला कपिलदेव प्रसाद द्वारा नई पीढ़ी को सिखाई जाती है। कपिलदेव प्रसाद बहुत ही सामान्य परिवार से आते हैं। इनके जैसे व्यक्ति को पद्मश्री मिलने से गांव के साथ-साथ आसपास के लोग के लिए गर्व की बात हैं। हालांकि सभी लोग उनकी काफी प्रशंसा कर रहे हैं। सभी पद्मश्री पाने वाले लोगो को मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं भी दी गयी।

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