यूपी में चुनाव जरूरी या जनता की सलामती

चुनाव
लेखक के विचार स्वयं पर आधारित है, इसकी अधिकारिक पुष्टि नही की जा सकती है- मोहित कुमार
उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल जनता को रिझाने में हर संभव प्रयास कर रहे है। आखिर जीत का बिगुल किसका बजेगा, इसका बेहद इंतजार किया जा रहा है। जीत-हार का फैसला जनता के हाथ में है। जनता जिसको चाहे सितारा बना दें औऱ वहीं सितारें से उठाकर फलक पर बैठा दें। फिलहाल इसपर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। बीजेपी, कांग्रेस, सपा और बसपा का आज ताजा सर्वे पेश करूंगा, जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आखिर जनसमर्थन किस पार्टी को कितना मिल रहा है। उत्तर प्रदेश में कुस आबादी 27 करोड़ के आस-पास है। सर्वे प्रत्येक जिले से तय किया गया है। यूपी को चार भागों में विभाजित करने के बाद आंकड़े रखने का प्रयास रहेगा। दरअसल पूर्वांचल, पश्चिमी यूपी, उत्तरी औऱ बुंदेलखंड में विभाजित करने के बाद मतदाताओं का रुख रखने के प्रयास किया जाएगा। पूर्वांचल में बीजेपी की विजय का आंकड़ा 42 फीसदी, सपा गठजोड़ 34 फीसदी, बीएसपी 16 फीसदी और कांग्रेस 9 फीसदी अन्य को 7 फीसदी मत मिलने की आंशका है। वहीं, पश्चिमी यूपी में बीजेपी को 40 फीसदी, सपा को 36 फीसदी, बसपा को 13 फीसदी, कांग्रेस को 7 फीसदी औऱ अन्य को 5 फीसदी मत मिल सकते है। इसके अलावा उत्तरी इलाके में बीजेपी को 43 फीसदी, सपा को 34 फीसदी, बसपा को 15 फीसदी, कांग्रेस को 11 फीसदी औऱ अन्य को 6 फीसदी मत मिलने की संभावना है। बुंदेलखंड में बीजेपी को 46 फीसदी, सपा को 32 फीसदी, बसपा को 17 फीसदी, कांग्रेस को 7 फीसदी और अन्य को 4 फीसदी मत मिलने का कयास लगाया जा रहा है। यूपी चुनाव
उल्लेखनीय है, सियासत का खेल भी अजीब है यारो, जीतने से पहले जनता के सामने नतमष्तक हो जाते है और जातने के बाद जनता का हक खाने में कोई कसर नहीं छोड़ते है। अजीब है ये राजनीति, नेता स्वार्थ में झुककर जनता के सामने वोटों की भीख मांगते है, सिर पर सत्ता का ताज सोभित हो जाए तो जनता सड़कों पर भूखी मरे या प्यासी किसी को ध्यान नहीं रहता है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कहते है कि बीजेपी ने जनता के घुराह किया है, जनता के साथ छल किया है। समाजवादी सरकार के विकास को अपना नेतृत्व बताया है। वहीं मुस्लिम विरोधी बताया है। अखिलेश यादव भूल गए कि सड़कों पर बेटियों की आबरु लुटती थी औऱ कानून चुप्पी साधकर बैठा रहता था। गुंडे माफिया खासकर सपा के कार्यकाल में पले बड़े है। देखा जाए तो यूपी की जनता का धन सपा के छोटे नेताओं से लेकर मंत्रियों के तहखानें में भरा रखा है। इनका तहखाना खोल दिया जाए तो यूपी ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता मालामाल हो सकती है।
देश में भुखमरी और गरीबी का मुख्य कारण सियासत रूपी चटनी खाने वालों की वजह से है। इनकी संपत्ति दिन दोगुनी और रात चौगुनी होती है। जनता पीछे पिछड़ती जा रही है। इसका असर सपा पर ही नहीं बल्कि बसपा, कांग्रेस, बीजेपी और अन्य दलों में भी देखा जा सकता है। राजनीति में कदम रख दो समझ लीजिए कि आप धनवान के श्रेणी में आने लगे। समाज की सेवा भाव के लिए लीडर का चयन होता है लेकिन आज व्यापार बनाकर रख दिया है। सवाल उठाने से पहले अपनी गलेवान टटोलना प्रारंभ कर दें तो समझ लीजिए की राजनीति का असली रूप आ गया। बीजेपी ने अपने मुद्दे रखे, जिनपर काफी हद तक काम भी किया। समसामायिक मुद्दों पर निगरान रखते हुए अपने चक्रव्यूह को भेदने का प्रयास किया। क्या बीजेपी सत्यता के मार्ग पर चलकर आगे बढ़ी है, तो इस पर भी तरफदारी नहीं की जा सकती है। जनता के हक को खाने में किसी भी दल के नेता चूकते नहीं है। यूपी चुनाव
संक्रमण नहीं चुनाव आवश्यक – सियासी दल
देश में कोरोना और ओमिक्रॉन ने त्राहिमाम की स्थिति पैदा कर दी है। सियासी दलों को बीती साल का माजरा भूल गया, जब चारों तरफ हाहाकार मची थी। आयोग ने चुनाव टालने को लेकर राजनीतिक दलों का समर्थन मांगा, तो सभी पार्टियों से एक ही जबाव मिला कि चुनाव समय के अनुसार ही होंगे। दूसरी तरफ दो गज दूरी मास्क जरूर का अभियान, जनता को यात्रा करने पर प्रतिबंध इतना ही नहीं मॉल, बैंक्वेट हॉल समेट अन्य सार्वजनिक स्थलों पर 50 फीसदी क्षमता का दिशा निर्देश जारी किया। शादी और अंतिम संस्कार में 20-30 लोगों की अनुमति दी गई। क्या सियासत दारों का कोविड औऱ ओमिक्रॉन से रिश्तेदारी है जो इनकी उपस्थिति से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। चुनावी रैलियों में हजारों लाखों लोगों की भीड़ बुलाकर प्रचार पर प्रतिबंध नहीं लेकिन शादी जैसे कार्यक्रम में 20 लोग। यूपी चुनाव