भारत के राज्य केरल और तमिलनाडु में दीवाली मनाने की परंपरा नहीं है
भारत में दीवाली की धूम हर जगह देखने को मिलती है। मालूम हो, दीवाली में दीपोत्सव का महत्व भगवान श्रीराम के वनागमन से जुड़ा है। श्रीराम ने लंकालके राजा रावण को परास्त करने के बाद चौदह वर्ष की वन अवधि को पूरा कर अपने पैतृक निवास पर वापस हुए थे। भगवान राम के भव्य स्वागत में अयोध्या वासियों ने गृत के दीप प्रज्वलित किए थे। दीवाली महोत्सव भारत के कोने-कोने में मनाया जाता है लेकिन दो इलाके ऐसे भी है जिनमें दीवाली मनाने का प्रचलन नहीं है।
भारत के राज्य केरल और तलिमनाडु में यह परंपरा नहीं अपनाई जाती है। इसके कारण कई निकलकर सामने आ रहे है। केरल में न ही दीपक जलाए जाते है और न ही पटाखे फोड़े जाते है। दरअसल इसका पहला कारण आपको बता दें कि केरल में राक्षसों का शासन हुआ करता था। राक्षस राज रावण के परास्त होने की खुशी में केरल के राजा ने खुशी नहीं मनाई और नहीं अपने राज्य की सीमाओं पर किसी को खुशी मनाने की अनुमति दी। दीवाली छोड़कर बाकि सभी त्योहार मनाए जाते है।
जानकारी के अनुसार केरल के सिर्फ कोच्चि शहर में दीवाली मनाई जाती है। इसके अलावा आपको कहीं भी रौनक दिकाई नहीं देगी। इसमें सबसे मुख्य कारण है केरल में महाबली असुर का राज था और उसे ही यहां पूजा जाता है। दीवाली मनाने का कारण है रावण पर राम का विजय, ऐसे में एक राक्षस के हारने को केरल के लोग सेलिब्रेट नहीं करते। केरल की कुल आबादी में हिंदु की संख्या कम है।
दूसरा कारण यह भी है कि इस दौरान वहां मौसम की वापसी होती है, तो भारी बारिश से त्रास्त लोग दीवाली नहीं मनाते है। तीसरा कारण दीवाली से पहले आने वाले ओणम त्योहार में लोग अपनी बचत पूंजी खर्च कर देते है। जिसकी वजह से दीवाली में खर्च नहीं कर पाते है। केरल के अलावा तमिलनाडु में भी दीवाली की रौनक नहीं रहती। दीवाली से पहले वहां नरक चतुर्दर्शी मनाई जाती है। तमिलनाडु के लोग दीवाली की जगह नरक चतुर्दर्शी ही सेलिब्रेट करते हैं।