बरसाना और वृंदावन के मंदिरों में खेली जाती बरसाने की लठमार होली

बरसाने की लठमार होली
(ग्रेटर नोएडा) होली हिन्दुओं का त्योहार है जो वसंत ऋतु में मनाया जाता है। होली को धुलेंडी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योतहार तीन दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन होता है होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। दूसरे दिन रंगों के साथ होली खेली जाती है। तीसरे दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। बरसाने की लठमार होली। ये होली बरसाना और वृंदावन के मंदिरों में खेली जाती है। लेकिन खास बात ये है कि लठमार होली में औरतें अपने गांवों के पुरूषों पर लाठियां बरसातीं हैं। बरसाने में लठमार होली बहुत हसीं मजाक के साथ मनाई जाती है। नंदगांव में सालों से मनाई जाने वाली लट्ठमार होली मनाते हुए लोग। लट्ठमार होली में अगर कोई पुरूष औरतों द्वारा पकड़ा जाता है तो उसके ऊपर लाठियां बरसाई जाती है साथ ही उसे महिलाओं के कपड़े पहनकर नाचना भी पड़ता है।

होली का यह पर्व यहां कई दिनों तक चलता है।पारंपरिक लट्ठमार होली में भाग लेती महिलाएं पुरुषों को लाठियों से मारती हैं। होली में लोग खुशी में नाचना-गाना करते है। और एक दूसरे को प्रेम के रंग लगाते है। लट्ठमार होली में खेल रहे पुरुषों को होरियारे कहा जाता है और महिलाओं को हुरियारिनें कहा जाता है।लट्ठमार होली खेलने की परंपरा की शुरुआत राधारानी और श्रीकृष्ण के समय से मानी जाती है. श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारावास में हुआ था। लेकिन उनका लालन-पालन नंदगांव में माता यशोदा और नन्द बाबा के घर पर हुआ। कान्हा बचपन से ही शरारती थे और अपने नटखटपन के कारण ही वे नंदगांव और आसपास के गांव में भी प्रसिद्ध थे। कृष्ण के नटखटपन से कई गोपियां उनके इर्द-गिर्द रहती थी। लेकिन कान्हा को बरसाना की राधारानी अधिक प्रिय थी। होली से कुछ दिन पूर्व कृष्ण अपने सखाओं को लेकर बरसाना में गोपियों के संग होली खेलने जाते थे। लेकिन जब कान्हा और उनके सखा गोपियों को रंग लगाने जाते तो गोपियां उन्हें लठ मारती थी। लठ से बचने के लिए कान्हा और उनके सखा ढालों का प्रयोग करते थे और लठों से बचते हुए कान्हा और उनके मित्र गुलाल उड़ाते थे। इसी घटना के बाद नंदगांव के पुरुष यानी हुरियारे और बरसाना की महिलाओं के बीच लट्ठमार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है आज भी हर साल बरसाना में कुछ इसी तरह से होली का नजारा देखने को मिलता है। बड़े स्तर पर बरसाना में हर साल लट्ठमार होली का आयोजन भी किया जाता है। लट्ठमार होली खेलने के लिए होली से एक दिन पूर्व बरसाने की हुरियारने नंदगांव जाती हैं और वहां के गोस्वामी समाज को गुलाल भेंट करते हुए होली खेलने का निमंत्रण देती हैं। इसे ‘फाग आमंत्रण कहा जाता हैं। फिर इस गुलाल को गोस्वामी समाज में वितरित किया जाता है और आमंत्रण को स्वीकार किया जाता है। फिर हुरियारने वापस बरसाना आ जाती हैं और वहां के श्रीजी मंदिर में इसकी सूचना देती हैं। इसके बाद संध्या में नंदगांव के हुरियारे भी बरसना के लोगों को नंदगांव में होली खेलने का निमंत्रण देते हैं और इस भी स्वीकार किया जाता है। निमंत्रण स्वीकार करने के अगले दिन नंदगांव के हुरियारे अपने हाथों में रंग व ढाल लेकर बरसाना गांव होली खेलने के लिए पहुंचते हैं।