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क्रिकेटरों से भरा रोमांच मूवी 83 का रिव्यू

मूवी 83

मूवी 83

पिछले दो सालों में कोरोना महामारी के कारण ज्यादा मूवी सिनेमा हॉल में रिलीज नहीं हो पाई है। इस बीच में ज्यादातर फिल्म को ऑनलाइन प्लेटफार्म ओटीटी पर रिलीज किया गया। वहीं इस कोरोना से लड़कर गुजारने वाली तीन पीढ़ियों में से एक पीढ़ी ऐसी भी है जिसने रेडियो के आसपास ग्रुप बनाकर क्रिकेट की कमेंट्री सुनी है। जबकि राह चलते पान की दुकान पर रुककर स्कोर पूछा है। क्रिकेट को दीवानों की तरह देखा है और फिर जब मुंबई के ब्रेबॉर्न स्टेडियम में विश्व विजेता क्रिकेट टीम के स्वागत में हुए कार्यक्रम में लता मंगेशकर ने ‘भारत विश्व विजेता..’ गाया तो उसके कैसेट खरीदकर उसे सालों साल सुना गया है।

ये वह पीढ़ी है जिसने अपनी किशोरावस्था में न मोबाइल देखा, न सोशल मीडिया, न इंटरनेट और न ही न्यूज चैनल। तब समाचार मतलब आकाशवाणी या अखबार, टेलीविजन मतलब दूरदर्शन और एक शहर से दूसरे शहर बात करने के लिए भी ट्रंक कॉल की बुकिंग करानी होती थी। फिल्म ‘83’ उस दौर की कहानी है। तब भारत भी क्रिकेट बस खेलता था। जीतना उसकी आदत में ही शुमार नहीं था। क्रिकेट टीम के तमाम खिलाड़ियों ने 1983 वर्ल्ड कप जाने का प्लान भी इस तरह से बनाया था कि वापसी की टिकटें फाइनल से पहले की ही बुक करा रखी थीं और कुछ तो यहीं से अमेरिका घूमने की तैयारी करने निकले थे। फिल्म ‘83’ क्रिकेट की अनिश्चितताओं की जीत है।


बता दें कि 1983 में इस देश में बहुत कुछ हुआ। वहीं विदेश में कटरीना कैफ भी इसी साल जन्मी जिनकी शादी कुछ दिन पहले विक्की कौशल से हुई। लेकिन ज्ञानी जैल सिंह के राष्ट्रपति रहते और इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते इस देश का वह दौर भी आसान नहीं था। वहीं उस कपिल देव की टीम ने क्रिकेट का विश्व कप जीत लिया जिसे हरियाणा से मुंबई जाने पर फास्ट बॉलिंग करने पर सिर्फ दो रोटियां मिलती थी। क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया में तारापोर से वह भिड़े। दिन की चार रोटियां अपने लिए करवाईं और फिर जब वर्ल्ड कप के लिए टीम चुने जाने की बारी आई तो रोजर बिन्नी और बलविंदर संधू के लिए सेलेक्टर्स से लड़कर जगह बनवाई। उस टीम में सुनील गावस्कर भी थे। फिल्म ‘83’ क्रिकेट के इस ‘महान’ खिलाड़ी पर बहुत शांत लेकिन ऐतिहासिक टिप्पणी है। फिल्म देखकर पहला सवाल जेहन में यही आता है कि क्या गावस्कर ने पूरी कोशिश की थी कि भारतीय टीम 1983 का वर्ल्ड कप न जीते? फिल्म ‘83’ क्रिकेट के एहसासों की जीत है।


गौरतलब है कि निर्देशक कबीर खान ने ये फिल्म वहां से शुरूआत की जहां क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पास वर्ल्ड कप खेलने का न्यौता आता है। और, खत्म वहां की है जिसके बारे में पूरा देश और दुनिया के किसी भी कोने में बसा क्रिकेट प्रेमी भारतीय जानता है। जिस कहानी का आदि और अंत पता हो, उसके बीच के किस्से ही दर्शक का ध्यान बनाए रखने के लिए काफी जरूरी हैं। वहीं फिल्म ‘83’ भी यही दर्शाती है। ये कपिल देव और टीम के तब के मैनेजर मान सिंह के नजरिये से एक विजय यात्रा की कहानी कहती है। ये यात्रा तिरस्कार, अपमान, असहयोग और असहमति की यात्रा है और ये यात्रा आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता, उदाहरण से सबक सिखाने और हर हाल में हिम्मत न हारने की भी कहानी है। ये एक उस ‘पागल’ इंसान की कहानी है जिसने पहले दिन से ठान रखा था कि वह इंग्लैड वर्ल्ड कप जीतने पहुंचा है।

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