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कोरोना जंग की राह में कांटे ही कांटे

अनिल निगम

भारत में कोराना का कहर बढ़ता जा रहा है। कोराना वायरस से देश में संक्रमित होने और मरने वालों का आंकड़ा भी सरपट दौड़ रहा है। केंद्र सरकार ने संपूर्ण देश में 25 मार्च से ही लॉकडाउन कर रखा है। लोगों को घरों में सुरक्षित रहने, बाहर निकलने पर अनिवार्य रूप से मास्का पहनने, सोशल डिस्टैंससिंग का पालन करने और हाथ धोने अथवा सैनेटाइज करने की एडवाईजरी लगातार जारी की जा रही है। लेकिन समाज के विभिन्नी वर्गों द्वारा इसको गंभीरता से न लेने के चलते सरकार और समाज के जिम्मेनदार लोगों के किए गए प्रयासों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। प्रवासी मजदूरों की रेल की पटरियों और सड़क मार्ग से यात्रा के बाद बिना जांच पड़ताल के गांवों में प्रवेश और शराब की दुकानों में मारा-मारी ने हमारी चिंता की लकीरों को और अधिक उभार दिया है।
सब्जी, फल, किराना और दूध विक्रेता कोरोना वायरस की चपेट में बहुत तेजी से आ रहे हैं। एक ओर समाज में अनेक ऐसे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष योद्धा हैं जो न सिर्फ़ वायरस के ख़िलाफ़ जंग को प्रभावी बनाने में लगे हैं, बल्कि अपना जीवन दांव पर लगाकर लोगों की सेवा कर रहे हैं। दूसरी ओर सब्जी मंडी, किराना दुकानों, सड़क-गलियों और अन्ये सार्वजनिक स्थानों में सैकड़ों लोग बिना मास्का के घूम रहे हैं। अगर समाज का कोई जागरूक नागरिक उनको समझाने की कोशिश भी करता है तो ऐसे लोगों को दी जानी वाली सीख बेहद बुरी लगती है।
चीन यानी जिस देश के वुहान प्रांत से कोराना वायरस फैला, ने कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन जैसा सख़्त कदम 30 लोगों के मारे जाने के बाद उठाया, इटली में लॉकडाउन का क़दम उस समय उठाया गया जब मरने वालों की संख्या 800 हो गई। इन देशों के मुकाबले भारत ने यह कदम तब उठाया जब कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा 10 के पार नहीं किया था। इस कठिन फ़ैसले की तारीफ़ वैश्विक स्तर पर की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को संपूर्ण देश में सुबह सात बजे से रात में नौ बजे तक जनता कर्फ्यू का ऐलान किया। लोगों ने उसका ईमानदारी से पालन किया। उसके बाद 25 मार्च से 21 दिन का लॉकडाउन, पार्ट दो में 3 मई और पार्ट तीन में 17 मई तक लॉकडाउन की घोषणा कर दी। कोरोना योद्धाओं के सम्मान में थाली, ताली पीटने और दीप जलाने के प्रधानमंत्री के आह्वान का लोगों ने जमकर समर्थन भी किया।
हालांकि सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन से सबसे अधिक परेशानी देश के प्रवासी मजदूरों को हुई। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में 45 करोड़ से ज्यादा लोग प्रवासी हैं। यह आंकड़ा भारत की कुल जनसंख्या का 37 फीसदी हिस्सा है। मजदूरों को रोजीरोटी की तलाश में अपना घरबार छोडकर अन्य शहरों अथवा दूसरे प्रदेशों में जाना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश और बिहार से पलायन करने वाले लोगों की संख्या देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा ज्यादा है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कुल संख्या का 50 फीसदी पलायन देश के हिंदी भाषी प्रदेशों-उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान से हुआ है। देश के दो बड़े महानगरों दिल्ली और मुंबई की ओर पलायन करने वालों की कुल संख्या लगभग एक करोड़ है जो वहां की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा है।
रोजी रोटी के साधन उद्योग धंधों के बंद होने और काम न होने के चलते प्रवासी मजदूरों में असुरक्षा की भावना पैदा होने लगी। वे अपने गांव लौटने को उतावले हो गए। हालांकि सरकार ने उनके लिए राहत पैकेज की घोषणा की और उनके खातों में पैसे भी ट्रांसफर किए। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, सेवा भारती, विश्व हिंदू परिषद सहित अनेक सामाजिक संगठनों ने ऐसे परेशान और हैरान लोगों को राशन और भोजन भी उपलब्धं करा रहे हैं। लेकिन लॉकडाउन पार्ट तीन में कोरोना के बढ़ते कहर और बढ़ती चुनौतियों से मजदूरों में बेचैनी बढ़ गई और उनके सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने प्रदेश और केंद्र सरकारों से घर वापसी की गुहार लगाई। सरकारों ने बसों और ट्रेनों के माध्यंम से उनकी मांग पूरी करनी भी शुरू कर दी। लेकिन राज्यों के हजारों प्रवासी मजदूर अपने-अपने गांवों के लिए सड़क और रेल पटरियों से पैदल जाना शुरू कर दिया। यह सिलसिला फिलहाल थमता नजर नहीं आ रहा। हालांकि बहुत से मजदूरों को स्थाहनीय प्रशासन और पुलिस ने क्वारंटीन किया लेकिन सैकड़ों मजदूर ऐसे भी हैं जो बिना क्वारंटीन हुए अपने गांवों में पहुंच चुके हैं। अब कल्पना कीजिए अगर ऐसे लोगों में चंद लोग भी संक्रमित होंगे तो वे गांव के स्वस्थ्य लोगों को बहुत तेजी से संक्रमित कर देंगे। भारत में 3 मई को लॉकडाउन का दूसरा चरण समाप्त हो गया। 4 मई से इसका तीसरा चरण शुरू हुआ। सरकार ने तीसरे चरण का लॉकडाउन कुछ छूट के साथ बढ़ाया। इसमें 4 मई से शराब की दुकानें खोलने की छूट भी दे दी गई। छूट मिलते ही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों में शराब की दुकानों के सामने कई किलोमीटर तक ख़रीददारों की लंबी-लंबी कतारें लग गईं। यहां मास्क् न पहनने के मामले बढ़ गए और सोशल डिस्टैं सिंग की जमकर धज्जियां उड़ीं। कई स्थानों पर भगदड़ मचने की वजह से पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा और शराब की दुकानें तक बंद करनी पड़ीं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को यहां तक कहना पड़ा कि अगर लोग नियमों का पालन सब्र के साथ नहीं करेंगे तो दी गई छूट वापस ले जी जाएगी। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने शराब के दाम बढ़ा दिए हैं। दिल्ली सरकार के इस निर्णय के बाद अनेक राज्यों ने 15 से 30 फीसदी तक अपने प्रदेश में भी शराब के रेट बढ़ा दिए हैं। इसमें दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि विपक्षी दल समस्या का समाधान निकालने की जगह अपनी सियासी रोटी सेंकने के काम में जुट गए हैं।
विपन्न हालात में जीवन यापन कर रहे मजदूरों की परेशानी स्वाभाविक है। उनकी समस्या को सुनियोजित तरीके से धैर्य के साथ ही हल किया जा सकता है। लेकिन इसमें समाज के पढ़े लिखे लोगों को महत्वथपूर्ण जिम्मेकदारी का निर्वहन करना होगा। उनको बेपरवाह और सोए हुए नागरिकों को जागरूक करना चाहिए कि वे भी सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस के हिसाब से मास्क पहनें, सोशल डिस्टैंसिंग और सैनेटाइजेशन का केवल पालन करें और दूसरों से भी कराएं। हर नागरिक के अंदर जिम्मेदारी का भाव पैदाकर ही कोरोना जैसी महामारी को शिकस्त दी जा सकती है।

(लेखक आईआईएमटी न्यूज के संपादक हैं)

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