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किस प्रकार करे मार्च के प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा

हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला व्रत होता हैं। इस व्रत कि मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह इस व्रत को रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को रखने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता हैं। यह निर्जल तथा निराहार व्रत सर्वोत्तम है परंतु अगर यह संभव न हो तो आप नक्तव्रत भी कर सकते हो।
प्रदोष व्रत की थाली को विशेष रूप से सजाना चाहिए. पूजा की थाली में 5 प्रकार के फल, शक्कर, दही, शहद, घी, गन्ना, गाय का दुध, गुड़, गन्ने का रस, गन्ना, अबीर, चंदन, अक्षत, धतूरा, बेलपत्र, जनेऊ, कलावा, दीपक, कपूर, अगर प्रदोष व्रत में विधि का विशेष ध्यान रखा जाता है।
प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद आरंभ होता है. पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि का आरंभ 26 मार्च को प्रात: 08 बजकर 21 मिनट और तिथि का समापन 27 मार्च को प्रात: 06 बजकर 11 मिनट पर होगा. इस दिन शिव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है और भगवान शिव को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाते हैं। इस दिन शिव आरती और शिव मंत्रों का जाप करना चाहिए. व्रत को समाप्त करने के बाद ही इस दिन भोजन ग्रहण करना चाहिए।
व्रत का समय
26 मार्च को शाम 06 बजकर 36 मिनट से रात्रि 08 बजकर 56 मिनट तक बत्ती आदि रखे जाते हैं।

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