आखिर क्यों ईरान के वैज्ञानिकों ने खुद ही उड़ा दिया था अपना सबसे सुरक्षित परमाणु संयंत्र ?

आदित्य सिन्हा। विश्व की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसियों में इस्राइल की मोसाद भी शामिल है, इस्राइल ने इसी साल ईरान में एक खुफिया मिशन को अंजाम दिया था। इस मिशन के तहत इस्राइल ने अप्रैल माह में ईरान के एक परमाणु संयंत्र को उड़ा दिया था। जिस परमाणु संयंत्र पर हमला किया गया था वह ईरान का सबसे सुरक्षित परमाणु संयंत्र था, लेकिन इस्राइल के जासूसों ने इतनी चालाकी से अंजाम दिया कि ईरान की सुरक्षा एजेंसी को भनक भी नहीं लगने दी।
ईरान के ही कुछ वैज्ञानिकों ने मिशन को पूरा किया था
एक मीडिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि मोसाद ने इतनी चालाकी से काम किया कि किसी को भी उस पर शक नहीं हुआ। इस्राइल के जासूसों ने इसके लिए ईरान के ही दस वैज्ञानिकों को अपने ग्रुप में शामिल कर लिया था, और उन्हें भरोसा दिलाया गया था कि हम सब एक गुप्त अभियान चला रहे है, जिसमे अंतरराष्ट्रीय असंतुष्ट समूहों के लिए हम काम कर रहे हैं। इस मिशन में ईरान के नटांज परमाणु संयंत्र को उड़ाना भी था। मोसाद के इस हमले में ईरान का नटांज परमाणु संयंत्र लगभग 90 प्रतिशत तक तबाह हो गया, जिससे उसकी परमाणु परियोजना को और भी पीछे धकेल दिया। धमाके के बाद परमाणु संयंत्र को करीब नौ महीने के लिए बंद कर दिया गया ।
ड्रोन से विस्फोटक परमाणु संयंत्र पर इस तरह के बड़े हमले के लिए इस्राइल ने पहुंचाए थे। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ड्रोन से बड़े बॉक्सों में सुरक्षित तरीके से विस्फोटकों को परमाणु संयंत्र तक लाया गया था। इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2019 में परमाणु संयंत्र निर्माण कार्य में लगने वाले सामान के जरिए भी विस्फोटकों को परिसर के अंदर लाया गया था। जिन वैज्ञानिकों को मोसाद ने भर्ती किया था, उनकी यह जिम्मेदारी भी थी कि वे विस्फोटकों को सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचा दें।
इस्राइल ने इरान के परमाणु संयंत्र को तबाह करने के लिए 18 महीनों तक योजना बनाई थी। इस योजना के तहत तीन हमले किए गए। पहला हमला जुलाई 2020 में किया गया था।जिसके लिए इस्राइल को जिम्मेदार भी ठहराया गया था। इसके बाद अप्रैल 2021 में दूसरा और जून 2021 में तीसरा हमला हुआ। इस्राइल ने इस खुफिया ऑपरेशन को पूरा करने के लिए लगभग 1000 तकनीकि विशेषज्ञों और जासूसों को रखा था।