सावन मास का पहला प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित, जानिए महत्व

सावन का महीना भगवान शंकर को सबसे अधिक प्रिय है, सभी भक्तगढ़ शिव पार्वती की विधिविधान से पूजा-अर्चना और व्रत रखकर उन्हें प्रसन्न करते हैं। श्राप के कारण चंद्र देव को क्षय रोग हो गया था, जिससे मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर का प्रदोष व्रत चंद्र देव ने रखा। उसी समय से श्रद्धालु भगवान शिव के प्रिय श्रद्धालु श्रावण मास में प्रदोष व्रत रखते है। बता दें कि इस व्रत से शारीरिक परेशानी और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है। अधिकांश इस व्रत को ब्रहस्पतिवार के दिन शुभ मुहुर्त में सम्पन्न किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार प्रदोष व्रत के दौरान भगवान शंकर के मंत्रों का जाप और शिव पुराण का श्रवण करना चाहिए। प्रदोष व्रत भगवान शिव और चंद्रदेव से जुड़ा है। चंद्रदेव ने क्षय रोग से मुक्ति पाने के लिए इस व्रत को आरंभ किया था। पूजा का शुभारंभ करने से पहले ब्रह्म मुहुर्त में निवृत्त होकर पूजा गृह में जल और पुष्प लेकर संकल्प ले साथ ही शिव पार्वती की आराधना करें। भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करने के बाद उनको धूप, अक्षत, पुष्प, धतूरा, फल, चंदन, गाय का दूध, भांग, धतूरा आदि समर्पित करें। ओम नम: शिवाय: मंत्र का जाप करें। शिव चालीसा का पाठ करने के बाद आरती करें। इस व्रत को फलदाई बनाने के लिए रात्रि जागरण करें साथ ही अगले दिन ब्राह्मण को वस्त्र, फल और अन्न का दान करें। हिंदू कलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहुर्त गुरूवार शाम 7:9 से 9:16 बजे तक रहेगा।

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