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राजीव लोचन मंदिर, रायपुर | जहाँ भगवान स्वयं लगाते हैं प्रसाद में भोग

राजिम। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। यह स्थान रायपुर से करीब 45-50 किलोमीटर की दुरी पर है। अगर आपको नदियां, सुंदर नजारे और मंदिर इन तीनों के दर्शन करना हो तो राजिम जरूर जाइये। बारिश के मौसम में तो यहाँ की खूबसूरती और अधिक बढ़ जाती है। महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण इसे छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम कहा जाता है। इसी के निकट स्थित है राजीव लोचन मंदिर। इस मंदिर में भगवान के तीन रुपों के दर्शन होते हैं। सुबह में भगवान के बाल्य रुप, दोपहर में युवा अवस्था और रात में वृद्धावस्था के दर्शन होते हैं। भगवान राजीव लोचन को तिल के तेल से लेपा जाता है, फिर श्रृंगार किया जाता है। शनिवार के दिन भगवान की विशेष पूजा की जाती है, उनका विशेष श्रृंगार भी किया जाता है।

यहाँ के लोगों और पुजारियों का मानना है कि भगवान यहां साक्षात प्रकट होकर प्रसाद में भोग लगाते हैं। उनके होने का अनुभव लोगों ने किया है। कई बार लोगों को ऐसा प्रतीत हुआ है कि भगवान ने भोग को ग्रहण किया है। दाल चावल पर प्रभु के हाथ के निशान मिले हैं। साथ ही कई बार यह भी देखा गया है कि भगवान के बिस्तर तेल, तकिये आदि बिखरे पड़े हैं। कई पत्रकारों ने ने इस रहस्य की पड़ताल भी की और सभी अचरज में पड़ गए।

राजीव लोचन मन्दिर का वास्तु चतुर्भुजाकार है। यहाँ भगवान विष्णु की काले पत्थर की मूर्ति अवस्थित है। जिसके हाथों में शंक, चक्र, गदा और पदम है। इसे महाभारतकालीन मंदिर कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गज और ग्राह की लड़ाई के बाद भगवान ने यहां के राजा रत्नाकर को दर्शन दिए, जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया। इसलिए इस क्षेत्र को हरिहर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। हरि मतलब राजीव लोचन जी और उनके पास ही एक और मंदिर है जिसे हर यानी राजराजेश्वर कहा जाता है।

अभी जो मंदिर है यह करीब सातवीं सदी का है। प्राप्त शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण नलवंशी नरेश विलासतुंग ने कराया था। भगवान राजीवलोचन मंदिर प्रांगण मे ही राजिम तेलीन का भी मंदिर है। माना जाता है कि राजिम तेलीन भगवान की असीम भक्त थी। बताया जाता है कि इस क्षेत्र का पुराना नाम पदमावती पुरी भी है, बाद में राजिम तेलीन के नाम पर राजिम नाम से जाना जाने लगा। मंदिर के उत्तर दिशा में स्थि द्वार से बाहर निकलने के बाद आप साक्षी गोपाल का दर्शन कर सकते हैं। साथ ही मंदिर के चारो ओर नृसिंह अवतार, बद्री अवतार, वामनावतार, वराह अवतार यानी चार अवतारों का दर्शन कर सकते हैं। मंदिर में निर्मित मूर्तियां और दीवारों पर उकेरी गई कलाकृतियां शानदार है। ये कलाकृतियां अत्यंत ही मनोरम और मनमोहक है। मंदिर देखने में सफेद दिखता है लेकिन वास्तव में यह सफेद नहीं है। मंदिर का अधिकांशतः हिस्सा पत्थर और ऊपर का हिस्सा ईट से बना है। चूने की पुताई की वजह से मंदिर सफेद दिखता है।

प्रतिवर्ष राजिम में माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है। छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए यह सम्पूर्ण क्षेत्र आस्था का बड़ा केंद्र रहा है। रमन सिंह की सरकार में इसे ‘राजिम कुंभ’ का भी नाम दिया गया था। हालांकि कांग्रेस सरकार के आने के बाद कुंभ नाम हटा दिया गया। इसी संगम क्षेत्र में कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर भी स्थित है। ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में श्री राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव जी की पूजा की थी। इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र भी है। मान्यता के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी। इसीलिये इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा। रायपुर पँहुच कर राजिम जाने के लिए आप बस या प्राइवेट वाहन का सहारा ले सकते हैं।

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