महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती वंदना चौधरी

सरकारें बदली, निजाम बदले, जमाना बदला, नहीं बदली तो सिर्फ उनकी पुरुषवादी सोच। देश को आजाद हुए लगभग 70 वर्ष हो चुके हैं लेकिन अभी भी समाज में महिलाओं की अभिव्यक्ति पर तमाम बंधन लगे हुये हैं। हमारी संस्कृति में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी कहा जाता है। अगर आँकड़ों की बात करें यह तो हमारे देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं। महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए अनेक कानून और योजनाएं हमारे देश में बनाई गई हैं लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि हमारे देश की महिलाओं की स्थिति में कितना मूलभूत सुधार हुआ है।
चाहे शहरों की बात करें चाहे गांव की, सच्चाई यह है कि महिलाओं की स्थिति आज भी आशा के अनुरूप नहीं है। सामाजिक जीवन, पारिवारिक तथा शारीरिक संरचना तक उन्हें द्वितीयक माना जाता है। अभी भी महिलाओं को समाज में खुलकर बोलने से रोका जाता है। ऐसी ही रूढ़िवादी मिथक को तोड़ता नाम है ‘वंदना चौधरी’। वंदना काफी समय से महिलाओं के उत्थान के लिए प्रयास कर रही हैं। वर्ष 2013 में मोदी नगर के दौसा की एक पंचायत ने जींस पहनकर और मोबाइल लेकर कॉलेज जाने पर रोक लगाई जिसका इन्होंने कई महिलाओं के साथ एकजुट होकर इसके खिलाफ आंदोलन छेड़ा और अंत में जीत भी हुई। तब से अब तक बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक गैर सरकारी संस्था ‘गीतांजलि वेलफेयर एजुकेशन समिति’ का संचालन कर रही हैं।
संस्था के बैनर तले ही महिलाओं के लिए संघर्ष करती हैं उनके अधिकारों को दिलाने का प्रयास कर रही हैं। इसके अलावा संस्था द्वारा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई प्रशिक्षण केंद्र भी बनाए हैं। इनके विजयनगर, संजयनगर और नवीपुर आदि स्थानों पर स्थित केंद्रों पर महिलाओं को मेहंदी, सिलाई और कंप्यूटर का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन केंद्रों पर एक बैच में 20 से 25 महिलाएं प्रशिक्षण लेती हैं। अब तक कई महिलाएं प्रशिक्षण के बाद रोजगार कर रही हैं। वंदना का मानना है कि आज भी समाज में महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है फिर संघर्ष चाहे घर में हो या समाज में। उनकीकोशिश है कि महिलाओं के प्रति अत्याचारों को रोका जा सके, महिलाओं को प्रशिक्षित कर रोजगारपरक करके आत्मनिर्भर बनाया जा सके। ताकि समाज में लोग लोकतंत्र में महिलाओं की अभिव्यक्ति को भी समझें। आज के दौर में लड़के और लड़की का फर्क समाज से पूरी तरह से मिटना चाहिए।
(डॉ रामशंकर)
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