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देश में कोरोना संक्रमण को रोकने के आड़े आया ‘फॉल्स निगेटिव’

मुंबई के एक डॉक्टर को खांसी के साथ बुखार होने पर उन्हें कोरोना संक्रमण का संदेह हुआ। उन्होंने बीएमसी के कस्तूरबा अस्पताल की प्रयोगशाला में अपनी जांच करवाई। जांच के बाद उनकी रिपोर्ट निगोटिव आई। उस रिपोर्ट के मुताबिक उन्हें संक्रमण नहीं था। निगेटिव रिपोर्ट मिलने से उन्होंने राहत की सांस ली, लेकिन उनमें संक्रमण के लक्षण बने रहे इसलिए डॉक्टन ने दो दिन के बाद फिर से जांच कराई तो उस बार उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई, यानी वह पहले से ही संक्रमित थे। इसी तरह के कई मामले नोएडा, पुणे जैसे शहरों में देखने को भी मिले हैं। ऐसी घटनाओं के कारण कोरोना के मरीजों के लिए चिकित्सकों के मन में चिंता और अधिक बढ़ गई है। कोविड-19 के पहले टेस्ट में वायरस शरीर में मौजूद होते हुए भी पकड़ में न आने के कारण ऐसा हो रहा है। इस तरह के मामले को चिकित्सा विज्ञान में ‘फाल्स निगेटिव’ कहा जाता हैं। चिकित्सकों का कहना है कि ऐसे मामलों के कारण किसी भी व्यक्ति को पूरी तरह से निगेटिव या पॉजिटिव तब तक घोषित नहीं किया जा सकता जब तक 24 घंटे के अंतराल में हुई दो जांच रिपोर्ट एक समान न आ जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि केवल निगेटिव टेस्ट रिपोर्ट का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति में संक्रमण नहीं है। व्यक्ति में अगर लक्षण पाए जा रहे हैं तो उसकी पुख्ता जांच जरुरी होती है। विशेषकर ऐसे व्यक्ति जिन्हें हाईरिस्क श्रेणी में रखा गया हो, या अधिक उम्र के हों और जिनको डायबिटीज, हाईपर टेंशन, किडनी या ह्रदय रोग जैसी बीमारी हो ऐसे मामलों में विशेष सावधानी बरती जाती है।

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