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कार्तिक पूर्णिमा को घर पर दैविक शक्ति का रहता है वास, जानिए पूजा करने की विधि

पूर्णिमा

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर स्वर्गलोक से देवी-देवता पृथ्वीलोक पर आते हैं और वाराणसी के गंगा घाट पर स्नान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली मनाई जाती है। इस दिन देवताओं के धरती पर आने की खुशी में घाटों को दीयों से रोशन किया जाता है। इतना ही नहीं, इस दिन घर के अंदर और बाहर दीप जलाने के परंपरा है।
कार्तिक पूर्णिमा के महत्व पर अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने कहा कि कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दीपदान करना शुभ और पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है। इसीलिए कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना गया हैI. इस दिन दान, यज्ञ और मंत्र जाप का भी विशेष महत्व बताया गया है।

कुलपति प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवलोक से सभी देवी- देवता गण पवित्र नगरी वाराणसी यानि महाकाल की नगरी काशी में पधारते हैं। इसलिए कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को काशी में बहुत साज-सज्जा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रिपुरासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से सभी बहुत त्रस्त हो चुके थे। तब सभी को उसके आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव ने उस राक्षस का संहार कर दिया। जिससे सभी को उसके आतंक से मुक्ति मिल गई। जिस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का संहार किया था, वह कार्तिक पूर्णिमा का दिन था। तभी से भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी पड़ा। इससे सभी देवों को अत्यंत प्रसन्नता हुई। तब सभी देवतागण भगवान शिव के साथ काशी पहुंचे और दीप जलाकर खुशियां मनाई। कहते हैं कि तभी से ही काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती रही है। इस दिन दीप दान का बहुत महत्व माना गया है। इसलिए इस दिन विशेष रूप से दीपदान किया जाता है।

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